कहानी संग्रह >> वीर बालिकाएँ वीर बालिकाएँहनुमानप्रसाद पोद्दार
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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ
लालबाई
आहोर के राजा पर्वतसिंह के पास सिन्ध के बादशाह अहमदशाह ने संदेश भेजा कि वे अपनी लड़की लालबाई का विवाह बादशाह से कर दें। बादशाह के दूत के द्वारा यह संदेश पाकर राजा पर्वतसिंह और उनके दरबार के राजपूत सरदार क्रोध से लाल हो उठे। बादशाह का दूत निराश होकर लौट गया। आहोर एक छोटा-सा राज्य था। अहमदशाह समझता था कि आहोर का राजा डर जायगा। जब उसका दूत निराश होकर लौट आया तो बड़ी भारी सेना लेकर उसने आहोर पर चढ़ाई कर दी। उसकी सेना ने आहोर के किले को चारों ओर से घेर लिया।
राजपूत सैनिकों की संख्या बहुत थोड़ी थी। यद्यपि उनकी वीरता के सामने अहमदशाह का साहस किले पर आक्रमण करने का नहीं हुआ, किंतु वह बहुत दिनों तक किले को घेरे पड़ा रहा। अन्त में किले में अन्न समाप्त हो गया। राजा पर्वतसिंह और उनके सैनिकों ने भूखों मरने के बदले शत्रु से लड़कर मरने का निश्चय किया। किले में जितनी स्त्रियाँ थीं, सबने जौहर-व्रत की तैयारी कर ली। बड़ी भारी चिता किले में बनायी गयी। सती राजपूत-स्त्रियाँ हँसती-हँसती उस धधकती चिता में कूद पड़ीं। पुरुषों ने केसरिया कपड़े पहिने, गले में तुलसी की माला डाली और शालिग्राम बाँधे और एक-दूसरे से गले मिले। फिर किले का फाटक खोल दिया गया। सभी राजपूत तलवारें खींचकर शत्रुओं पर टूट पड़े और लड़ते हुए मारे गये। राजा पर्वतसिंह, उनके पुत्र और सभी साथी खेत रह गये।
अहमदशाह जब युद्ध जीतकर आहोर के किले में घुसा तो पूरा किला चिता के धूएँ से भरा था। उसमें कोई जीवित मनुष्य नहीं था। अहमदशाह तो सिर पकड़कर बैठ ही गया, लेकिन पीछे पता लगाने पर उसे यह बात मालूम हो गयी कि पर्वतसिंह ने अपनी पुत्री लालबाई को गुप्तरूप से अपने एक विश्वासी सरदार के यहाँ भेज दिया है। अहमदशाह ने उस सरदार के पास दूत भेज दिया लालबाई को सौंप देने के लिये।
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