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प्रेमचन्द की कहानियाँ 2

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9763
आईएसबीएन :9781613015001

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दूसरा भाग

2. अभिनय

रात को गुरुप्रसाद के घर मित्रों की दावत हुई। दूसरे दिन कोई छः बजे पाँचों आदमी सेठजी के पास जा पहुँचे। संध्या का समय हवाखोरी का है। आज मोटर पर न आने के लिए बना-बनाया बहाना था। सेठजी आज बेहद खुश नजर आते थे। कल की मुहर्रमी सूरत अंतर्धान हो गई थी। बात-बात पर चहकते थे, हँसते थे, फिकरा कसते थे जैसे लखनऊ के कोई रईस हों। दावत का सामान तैयार था। मेजों पर भोजन चुना जाने लगा। अंगूर, संतरे, केले, सूखे मेवे, कई किस्म की मिठाईयाँ, कई तरह के मुरब्बे; शराब आदि दिए गए और यारों ने खूब मजे से दावत खायी। सेठजी मेहमान-नेवाजी के पुतले बने हुए हरेक मेहमान को आप आ-आकर पूछते–कुछ और मगवाऊँ? कुछ तो और लीजिए। आप लोगों के लायक भोजन यहाँ कहाँ बन सकता है? भोजन के उपरांत लोग बैठे, तो मुआमले को बातचीत होने लगी। गुरुप्रसाद का हृदय आशा और भय से काँपने लगा।

सेठजी– हुजूर ने बहुत ही सुंदर नाटक लिखा है। क्या बात है !

ड्रामेटिस्ट– यहाँ जनता अच्छे ड्रामों की कद्र नहीं करती, नहीं तो यह ड्रामा लाजवाब होता।

सेठजी– जनता कद्र नहीं करती न करे, हमें तो जनता की बिल्कुल परवाह नहीं है रत्ती बराबर परवाह नहीं है। मैं तो इसकी तैयारी में 50 हजार केवल बाबू साहब की खातिर से खर्च कर दूँगा। आपने इतनी मेहनत से एक चीज लिखी है तो मैं उसका प्रचार भी उतने ही हौसले से करूँगा। हमारे साहित्य के लिए क्या यह कम सौभाग्य की बात है कि आप जैसे महान् पुरुष इस क्षेत्र में आ गए। यह कीर्ति हुजूर को अमर बना देगी।
ड्रामेटिस्ट– मैंने तो ऐसा ड्रामा आज तक नहीं देखा। लिखता मैं भी हूँ, और लोग भी लिखते हैं। लेकिन आपकी उड़ान को कोई क्या पहुँचेगा! कहीं-कहीं तो आपने शेक्सपियर को भी मात कर दिया है।

सेठजी– तो जनाब, जो चीज दिल की उमंग से लिखी जाती है, वह ऐसी ही अद्वितीय होती है। शेक्सपियर ने जो कुछ लिखा, रुपये के लोभ से लिखा। हमारे दूसरे नाटककार भी धन ही के लिए लिखते हैं। उनमें यह बात कहाँ पैदा हो सकती है, जो निःस्वार्थ भाव से लिखने वालों में पैदा हो सकती है। गोसाईंजी की रामायण क्यों अमर है? इसीलिए कि वह भक्ति और प्रेम से प्रेरित होकर लिखी गई है। सादी की गुलिस्ताँ और बोस्ताँ, होमर की रचनाएँ इसीलिए स्थायी हैं कि उन कवियों ने दिल की उमंग से लिखा। जो उमंग से लिखता है, वह एक-एक शब्द, एक-एक वाक्य एक-एक उक्ति पर महीनों खर्च कर देता है। धनेच्छु को तो एक काम जल्दी से समाप्त करके दूसरा काम शुरू करने की फिक्र होती है।

ड्रामेटिस्ट– आप बिलकुल सत्य कह रहे हैं। हमारे साहित्य की अवनति केवल इसलिए हो रही है कि हम सब धन के लिए या नाम के लिए लिखते हैं।

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