नई पुस्तकें >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 2 प्रेमचन्द की कहानियाँ 2प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दूसरा भाग
रग्घू ने विनीत नेत्रों से देख कर कहा– मैं तो हूँ ही काकी, डर किस बात का है?
बड़ा लड़का केदार बोला– काकी, रग्घू दादा ने हमारे लिए दो गाड़ियाँ बना दी हैं। यह देख, एक पर हम और खुन्नू बैठेंगे, दूसरी पर लछमन और झुनियाँ। दादा दोनों गाड़ियाँ खींचेंगे।
यह कह कर वह कोने से छोटी-छोटी गाड़ियाँ निकाल लाया। चार-चार पहिये लगे थे, बैठने के लिए तख्ते और रोक के लिए दोनों तरफ बाजू थे।
पन्ना ने आश्चर्य से पूछा– ये गाड़ियाँ किसने बनायीं?
केदार ने चिढ़कर कहा– रग्घू दादा ने बनायी हैं, और किसने। भगत के घर से बसूला और रुखानी माँग लाये और चटपट बना दी। खूब दौड़ती हैं काकी। बैठ खुन्नू, मैं खींचूँ।
खुन्नू गाड़ी में बैठ गया। केदार खींचने लगा। चर-चर का शोर हुआ, मानो गाड़ी भी इस खेल में लड़के के साथ शरीक है।
लछमन ने दूसरी गाड़ी पर बैठकर कहा– दादा खींचो।
रग्घू ने झुनिया को भी गाड़ी में बिठा दिया और गाड़ी खींचता हुआ दौड़ा। तीनों लड़के तालियाँ बजाने लगे। पन्ना चकित नेत्रों से यह दृश्य देख रही थी और सोच रही थी कि यह वही रग्घू है या और।
थोड़े देर के बाद दोनों गाड़ियाँ लौटीं; लड़के घर में जा कर इस यानयात्रा के अनुभव बयान करने लगे। कितने खुश थे सब, मानो हवाई जहाज पर बैठ आये हों।
खुन्नू ने कहा– काकी, सब पेड़ दौड़ रहे थे।
लछमन– और बछियाँ कैसी भागीं, सब की सब दौड़ीं।
केदार– काकी, रग्घू दादा दोनों गाड़ियाँ एक साथ खींच ले जाते हैं।
झुनिया सबसे छोटी थी। उसका व्यंजनाशक्ति उछल-कूद और नेत्रों तक परमित थी–तालियाँ बजा-बजा कर नाच रही थी।
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