नई पुस्तकें >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 2 प्रेमचन्द की कहानियाँ 2प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दूसरा भाग
यह कहकर पन्ना रोती हुई वहाँ से चली गयी। रग्घू वहीं मूर्ति की तरह बैठा रहा। आसमान की ओर टकटकी लगी थी और आँखों से आँसू बह रहे थे।
पन्ना की बातें सुनकर मुलिया समझ गयी कि अब अपने पौ बारह हैं। चट-पट उठी, घर में झाड़ू लगायी, चूल्हा जलाया और कुएँ से पानी लाने चली। उसकी टेक पूरी हो गयी थी।
गाँव में स्त्रियों के दो दल होते हैं– एक बहुओं का, दूसरा सासों का। बहुएँ सलाह और सहानुभूति के लिए अपने दल में जाती हैं, सासें अपने दल में। दोनों की पंचायतें अलग होती हैं। मुलिया को कुएँ पर दो-तीन बहुएँ मिल गयीं। एक ने पूछा– आज तो तुम्हारी बुढ़िया बहुत रो-धो रही थी।
मुलिया ने विजय के गर्व से कहा– इतने दिनों से घर की मालकिन बनी हुई हैं, राज-पाट छोड़ते किसे अच्छा लगता है? बहन, मैं उनका बुरा नहीं चाहती; लेकिन एक आदमी की कमाई में कहाँ तक बरकत होगी। मेरे भी तो यही खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने के दिन हैं। अभी उनके पीछे मरो, फिर बाल-बच्चे हो जायँ, उनके पीछे मरो। सारी जिंदगी रोते ही कट जाय।
एक बहू– बुढ़िया यही चाहती है कि यह बस जन्मभर लौंडी बनी रहें। मोटा-झोटा खाएँ और पड़ी रहें।
दूसरी बहू– किस भरोसे पर कोई मरे। अपने लड़के तो बात नहीं पूछते, पराये लड़कों का क्या भरोसा? कल इनके हाथ-पैर हो जायँगे, फिर कौन पूछता है। अपनी-अपनी मेहरियों का मुँह देखेंगे। पहले ही से फटकार देना अच्छा है। फिर तो कोई कलंक न होगा।
मुलिया पानी ले कर गयी, खाना बनाया और रग्घू से बोली– जाओ, नहा आओ; रोटी तैयार है।
रग्घू ने मानो सुना ही नहीं। सिर पर हाथ रखकर द्वार की तरफ ताकता रहा।
मुलिया– क्या कहती हूँ, कुछ सुनायी देता है? रोटी तैयार है, जाओ नहा आओ।
रग्घू– सुन तो रहा हूँ, क्या बहरा हूँ? रोटी तैयार है तो जाकर खा ले। मुझे भूख नहीं है।
मुलिया ने फिर कुछ नहीं कहा। जाकर चूल्हा बुझा दिया, रोटियाँ उठा कर छीके पर रख दीं और मुँह ढाँककर लेट रही।
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