कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 3 प्रेमचन्द की कहानियाँ 3प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसरा भाग
अमरनाथ- क्यों नहीं, नहीं लाये।
मालती- बाजार में मिली न होगी। तुम्हें क्यों मिलने लगी, और मेरे लिए।
अमरनाथ- नहीं साहब, मिली मगर लाया नहीं।
मालती- आख़िर कोई वजह? रुपये मुझसे ले जाते।
अमरनाथ- तुम खामख़ाह जलाती हो। तुम्हारे लिए जान देने को मैं हाज़िर रहा।
मालती- तो शायद तुम्हें रुपये जान से भी ज्यादा प्यारे हों?
अमरनाथ- तुम मुझे बैठने दोगी या नहीं? अमर मेरी सूरत से नफरत हो तो चला जाऊँ!
मालती- तुम्हें आज हो क्या गया है, तुम तो इतने तेज मिजाज के न थे?
अमरनाथ- तुम बातें ही ऐसी कर रही हो।
मालती- तो आखिर मेरी चीज़ क्यों नहीं लाये?
अमरनाथ ने उसकी तरफ़ बड़े वीर-भाव के साथ देखकर कहा- दुकान पर गया, जिल्लत उठायी और साड़ी लेकर चला तो एक औरत ने छीन ली। मैंने कहा, मेरी बीवी की फ़रमाइश है तो बोली- मैं उन्हीं को दूंगी, कल तुम्हारे घर आऊँगी।
मालती ने शरारत-भरी नज़रों से देखते हुए कहा- तो यह कहिए आप दिल हथेली पर लिये फिर रहे थे। एक औरत को देखा और उसके कदमों पर चढ़ा दिया!
अमरनाथ- वह उन औरतों में नहीं, जो दिलों की घात में रहती हैं।
मालती- तो कोई देवी होगी?
अमरनाथ- मै उसे देवी ही समझता हूँ।
मालती- तो आप उस देवी की पूजा कीजिएगा?
अमरनाथ- मुझ जैसे आवारा नौजवान के लिए उस मन्दिर के दरवाजे बन्द हैं।
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