लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 4

प्रेमचन्द की कहानियाँ 4

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9765
आईएसबीएन :9781613015025

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

374 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौथा भाग


डॉक्टर साहब ठंडी साँस लेकर आहिस्ता से बोले- ''आज पचपन साल हुए यह गुलाब का फूल, जो बिलकुल मुरझाया हुआ है और छूने से चूर-चूर हुआ जाता है, खिला हुआ था। यह उस हसीना का तोहफ़ा था, जिसकी तस्वीर सामने लटक रही है और मैं इसे शादी के दिन अपने कपड़ों में लगाना चाहता था। इन पृष्ठों में यह फूल पचपन साल तक दफ़न रहा है। क्या यह अर्द्ध-शताब्दी का पुराना फूल फिर हरा हो सकता है?''

श्रीमती चंचलकुँवर ने बेदिली से सिर हिलाकर कहा- ''यह तो ऐसा ही है, जैसे कोई पूछे कि किसी बूढ़ी औरत का झुर्रीदार चेहरा फिर चिकना हो सकता है ?''

डॉक्टर घोष ने फ़र्माया- ''अच्छा, देखो !''

यह कहकर उन्होंने मेज़ पर रखे हुए मटके का ढकना उठाया और उस मुरझाए हुए फूल को पानी में डाल दिया जो उसमें भरा हुआ था। पहले कुछ देर तक तो फूल पानी में तैरता रहा। उस पर पानी का कुछ असर न हुआ, लेकिन एक ही लम्हें में आश्चर्यजनक परिवर्तन नज़र आने लगा। चिपटी और सूखी हुई पंखुड़ियाँ हिली और उनका रंग आहिस्ता-आहिस्ता सुर्ख़ होने लगा। ऐसा मालूम होता था कि फूल एक गहरी नींद से जाग रहा है। पतला डंठल और पत्तियाँ हरी हो गईं और देखते-देखते वह पचास साला फूल बिलकुल नवविकसित मालूम होने लगा। वह अभी अच्छी तरह खिला न था। बीच की कुछ पंखुड़ियाँ लिपटी हुई थीं। उन पर शबनम की दो बूँदें भी चमक रही थीं।

डॉक्टर साहब के दोस्तों ने लापरवाही से कहा- ''तमाशा तो बहुत अच्छा है, लेकिन बताइए, यह हुआ क्योंकर?'' उन लोगों ने बाज़ीग़रों के इससे भी कहीं अजीब करिश्मे देखे थे।

डॉक्टर घोष बोले- ''क्या आप लोगों ने 'जुल्मात' (वह घोर अधंकार, जो सिकंदर के अमृत-कुंड तक पहुँचने में पड़ा था) का नाम कभी नहीं सुना?''

दयाराम- ''सुना जरूर है, मगर वहाँ पानी किसी को मिला कब?''

डॉक्टर घोष- ''इसलिए नहीं मिला कि किसी ने उसकी मुनासिब तलाश नहीं की। अब तहक़ीक़ से मालूम हुआ है कि ज़ुल्मात में आबे-हयात का एक चश्मा है। उसके किनारे बड़े-बड़े दरख़्त हैं जो कई सदियों के पुराने होने पर भी आज तक हरे-भरे हैं। मुझे इन गवेषणाओं का प्रेमी समझकर मेरे एक दोस्त ने थोड़ा-सा पानी मेरे पास भेजा है। वह इस प्याले में भरा हुआ है।''

ठाकुर विक्रमसिंह को इन बातों पर यकीन न था। इसलिए उन्होंने पूछा-- ''हाँ, होगा, लेकिन यह बतलाइए कि इस पानी का असर इंसान के जिस्म पर भी हो सकता है?''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book