कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 4 प्रेमचन्द की कहानियाँ 4प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौथा भाग
सुरेश एकांत में बैठे हुए शीतला के चित्र को मंगला से मिलाते, यह निश्चय करने के लिए कि उनमें अन्तर क्या है? एक क्यों मन को खींचती है; दूसरी क्यों उसे हटाती है? पर उनके मन का यह खिंचाव केवल एक चित्रकार या कवि का रसास्वादन मात्र था। वह पवित्र और वासनाओं से रहित था। वह मूर्ति केवल उनके मनोरंजन की सामग्री-मात्र थी। वह अपने मन को बहुत समझाते, संकल्प दोष? पर उनका यह सब प्रयास मंगला के सम्मुख जाते ही विफल हो जाता। वह बड़ी सूक्ष्म दृष्टि से मंगला के मन के बदले हुए भावों को देखते; पर एक पक्षाघात-पीड़ित मनुष्य की भाँति घी के घड़े को लुढ़कते देखकर भी रोकने का कोई उपाय न कर सकते। परिणाम क्या होगा। यह सोचने का साहस ही न होता। पर जब मंगला ने अंत को बात-बात में उनकी तीव्र आलोचना करना शुरू कर दिया, वह उससे उच्छृंखलता का व्यवहार करने लगी, तब उसके प्रति उनका वह उतना सौहार्द्र भी विलुप्त हो गया। घर में आना-जाना ही छोड़ दिया।
एक दिन संध्या के समय बड़ी गरमी थी, पंखा झलने से आग और भी दहकती थी। कोई सैर करने बगीचों में भी न जाता था। पसीने की भाँति शरीर से सारी स्फूर्ति बह गई थी। जो जहाँ था, वहीं मुर्दा-सा पड़ा था। आग से सेंके हुए मृदंग की भाँति लोगों के स्वर कर्कश हो गए थे। साधारण बातचीत में भी लोग उत्तेजित हो जाते, जैसे साधारण संघर्ष से वन के वृक्ष जल उठते हैं। सुरेशसिंह कभी चार कदम टहलते, फिर हाँफकर बैठ जाते। नौकरों पर झुंझला रहे थे कि जल्द-जल्द छिड़काव क्यों नहीं करते! सहसा उन्हें अंदर से गाने की आवाज सुनाई दी। चौंके, फिर क्रोध आया। मधुर गान कानों को अप्रिय जान पड़ा। यह क्या बेवक्त की शहनाई है। यहाँ गरमी के मारे दम निकल रहा है, और इन सबको गाने की सूझी है ! मंगला ने बुलाया होगा, और क्या! लोग नाहक कहते हैं कि स्त्रियों के जीवन का आधार प्रेम है। उनके जीवन का आधार वही भोजन, निद्रा राग-रंग, आमोद-प्रमोद है, जो समस्त प्रणियों का है। घंटे भर तो सुन चुका। यह गीत कभी बंद होगा या नहीं; सब व्यर्थ में गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रही हैं।
अंत को न रहा गया। जनानखाने में आकर बोले– यह तुम लोगों ने क्या काँव-काँव मचा रखी है? यह गाने-बजाने का कौन-सा समय है? बाहर बैठना मुश्किल हो गया !
सन्नाटा छा गया जैसे शोर-गुल मचाने वाले बालकों में मास्टर पहुँच जाए। सभी ने सिर झुका लिया और सिमट गईं।
मंगला तुरन्त उठकर सामने वाले कमरे में चली गई। पति को बुलाया और आहिस्ते से बोली– क्यों इतना बिगड़ रहे हो?
‘मैं इस वक्त गाना नहीं सुनना चाहता।’
‘तुम्हें सुनाता ही कौन है? क्या मेरे कानों पर भी तुम्हारा अधिकार है?’
‘फजूल की बमचख–’
‘तुमसे मतलब?’
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