लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 5

प्रेमचन्द की कहानियाँ 5

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :220
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9766
आईएसबीएन :9781613015032

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

265 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पाँचवां भाग


डॉक्टर घोष- ''यह आपको अभी एक क्षण में मालूम हुआ जाता है। आप सब व्यक्ति इस पानी को बेतकल्लुफ़ पिएँ, ताकि आपका शवाब एक बार फिर लौट आए। मुझे तो जवान होने की हवस नहीं है, क्योंकि मैं बहुत मुसीबतें झेलकर इस आलम तक पहुँचा हूँ। अगर आपको शौक हो तो मैं इस पानी का तजुर्बा करूँ।'' यह कहकर डॉक्टर घोष ने चार शीशे के गिलास निकाले और उन्हें उस पानी से भरने लगे। पानी में कोई जीवनदायी ताकत जरूर थी, क्योंकि गिलासों के हाथ से छोटे-छोटे बुलबुले लगातार उठने लगे। वह ऊपर आकर चमकीली फुवार बनते थे और तब फूट जाते थे। इसके सिवा इसमें से एक मनोहर खुशबू निकल रही थी। यह देखकर लोगों को पानी की तासीर का कुछ यकीन होने लगा, हालाँकि उन्हें यह विश्वास न होता था कि कोई बूढ़ा आदमी यह पानी पीकर जवान हो सकता है! इसलिए सब-के-सब पानी पीने पर आमादा हो गए। डॉक्टर घोष ने उन्हें इस तरह शौकीन देखकर उनसे एक क्षण सोच-विचार करने की दरख्वास्त की और बोले- ''मेरे प्यारे और विश्वासपात्र दोस्तो! आप लोगों को पूरी ज़िंदगी का अनुभव हो चुका है, इसलिए पानी को पीने से पहले जीने के कुछ ऐसे नियम मुकर्रर कर लीजिए, ताकि जवानी की दुश्वारियाँ दोबारा आपको बरबाद न करें और आप इस अंधकारपूर्ण घाटी से कुशलपूर्वक गुजर जाएँ। सोचिए कि गर्म-सर्द जमाने के इतने अनुभवों के बाद अगर आप चरित्र-रक्षण में नौजवानाने-दुनिया के लिए नमूना न बन सके तो कितने शर्म की वात होगी।''

डॉक्टर साहब का यह उपदेश सुनकर इन लोगों के चेहरों पर हल्की-सी मुस्कराहट आ गई। उन्होंने इसका कुछ जवाब न दिया। यह ख्याल ही जिस पर हँसी आए, सुना कि जवानी के बेपरवाह और उच्छृंखल काम करने के ऐसे तल्ख अनुभवों के बाद यह लोग फिर जान-बूझकर उनमें गिरफ्तार होंगे।

डॉक्टर साहब ने कृपापूर्वक कहा- ''अब आप लोग इसे शौक से पिएँ। मुझे बेइंतहा मसर्रत है कि मुझे अपने तजुर्बे के लिए आप जैसे लायक आदमी मिल. गए।''

दुर्बल हाथों से इन चारों आदमियों ने गिलासों को उठाकर होठों से लगाया। अगर यथार्थत: डॉक्टर साहब के ख्याल के मुताबिक इस पानी मैं जाँबख्श असर था तो इन आदमियों से ज्यादा दुनिया में शायद ही किसी को इसकी जरूरत होगी। उनकी मुखाकृतियों से ऐसा गुमान होता था कि उन्होंने शबाब की सूरत ही नहीं देखी और जन्मजात वूढ़े थे, गोया वे हमेशा से ऐसे ही खस्ता, मायूस और सफ़ेद हो रहे थे। ये लोग डॉक्टर साहब की मेज के चारों ओर झुके हुए बैठे थे। आने वाली जवानी की खुशी भी उनके चेहरों पर रौनक न पैदा कर सकती थी। उनके जिस्म और दिल बिलकुल बेजान हो गए थे। पानी पीकर उन्होंने गिलास मेज पर रख दिए। मगर एक लम्हे में उन लोगों की हालत में एक खुशगवार तब्दीली दिखाई दी। उनके चेहरे रौशन हो गए। रौनक नज़र लाने लगी। उनके जर्द और बेरंग रुखसारों पर सुर्खी पैदा हो गई। उन्होंने एक-दूसरे की तरफ देखा। उन्हें ऐसा मालूम हुआ कि यथार्थत: कोई विद्युतीय शक्ति उनके जिस्म से उन चिह्नों को मिटा रही है, जिन्हें बेरहम ज़माना काफी समय से देख रहा है। श्रीमती चंचलकुँवर को ऐसा महसूस हुआ कि मुझ पर फिर जोवन आ रहा है। उसने एक अंदाज़ से चेहरे पर घूँघट बढ़ा लिया।

सब लोग खुश होकर बोले-- ''थोड़ा-सा आबे-हयात और दीजिए। हम कुछ जवान जरूर हो गए हैं, लेकिन अभी कुछ कसर है। लाइए, जल्द एक गिलास और पिलाइए।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book