कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 5 प्रेमचन्द की कहानियाँ 5प्रेमचंद
|
5 पाठकों को प्रिय 265 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पाँचवां भाग
यह कह कर वह हंसने लगा; लेकिन अनूपा की आंखें डबडबा गयीं, वासुदेव को छाती से लगाते हुए बोली- अम्मा, दिल से कहती हो?
सास- भगवान् जानते है !
अनूपा- आज यह मेरे हो गये?
सास- हां सारा गांव देख रहा है ।
अनूपा- तो भैया से कहला भेजो, घर जायें, मैं उनके साथ न जाऊंगी।
अनूपा को जीवन के लिए आधार की जरूरत थी। वह आधार मिल गया। सेवा मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है। सेवा ही उस के जीवन का आधार है।
अनूपा ने वासुदेव का लालन-पोषण शुरू किया। उबटन और तेल लगाती, दूध-रोटी मल-मल के खिलाती। आप तालाब नहाने जाती तो उसे भी नहलाती। खेत में जाती तो उसे भी साथ ले जाती। थोड़े ही दिनों में उससे हिल-मिल गया कि एक क्षण भी उसे न छोडता। मां को भूल गया। कुछ खाने को जी चाहता तो अनूपा से मांगता, खेल में मार खाता तो रोता हुआ अनूपा के पास आता। अनूपा ही उसे सुलाती, अनूपा ही जगाती, बीमार हो तो अनूपा ही गोद में लेकर बदलू वैध के घर जाती, और दवायें पिलाती।
गांव के स्त्री-पुरूष उसकी यह प्रेम तपस्या देखते और दांतो उंगली दबाते। पहले बिरले ही किसी को उस पर विश्वास था। लोग समझते थे, साल-दो-साल में इसका जी ऊब जाएगा और किसी तरफ का रास्ता लेगी; इस दुधमुंहे बालक के नाम कब तक बैठी रहेगी; लेकिन यह सारी आशंकाएं निर्मूल निकलीं। अनूपा को किसी ने अपने व्रत से विचलित होते न देखा। जिस ह्रदय मे सेवा को स्रोत बह रहा हो-स्वाधीन सेवा का-उसमें वासनाओं के लिए कहां स्थान? वासना का वार निर्मम, आशाहीन, आधारहीन प्राणियों पर ही होता है चोर की अंधेरे में ही चलती है, उजाले में नही।
वासुदेव को भी कसरत का शौक था। उसकी शक्ल सूरत मथुरा से मिलती-जुलती थी, डील-डौल भी वैसा ही था। उसने फिर अखाडा जगाया। और उसकी बांसुरी की तानें फिर खेतों में गूजने लगीं।
इस भाँति १३ बरस गुजर गये। वासुदेव और अनूपा में सगाई की तैयारी होने लगीं।
|