कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 5 प्रेमचन्द की कहानियाँ 5प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पाँचवां भाग
‘तुम्हें मुझ पर इतना विश्वास नहीं?’
आनन्द होस्टल चला। जरा देर बाद रूपमणि स्वराज्य-भवन की ओर चली।
रूपमणि स्वराज्य-भवन पहुँची, तो स्वयंसेवकों का एक दल विलायती कपड़े के गोदामों को पिकेट करने जा रहा था। विशम्भर दल में न था।
दूसरा दल शराब की दूकानों पर जाने को तैयार खड़ा था। विशम्भर इसमें भी न था।
रूपमणि ने मन्त्री के पास आकर कहा- आप बता सकते हैं, विशम्भर नाथ कहाँ हैं?
मन्त्री ने पूछा- वही, जो आज भरती हुए हैं?
‘जी हाँ, वही।’
‘बड़ा दिलेर आदमी है। देहातों को तैयार करने का काम लिया है। स्टेशन पहुँच गया होगा। सात बजे की गाड़ी से जा रहा है।’
‘तो अभी स्टेशन पर होंगे।’
मन्त्री ने घड़ी पर नजर डालकर जवाब दिया- हाँ, अभी तो शायद स्टेशन पर मिल जाएँ।
रूपमणि ने बाहर निकलकर साइकिल तेज की। स्टेशन पर पहुँची, तो देखा, विशम्भर प्लेटफार्म पर खड़ा है।
रूपमणि को देखते ही लपककर उसके पास आया और बोला- तुम यहाँ कैसे आयी। आज आनन्द से तुम्हारी मुलाकात हुई थी?
रूपमणि ने उसे सिर से पाँव तक देखकर कहा- यह तुमने क्या सूरत बना रखी है? क्या पाँव में जूता पहनना भी देशद्रोह है?
विशम्भर ने डरते-डरते पूछा- आनन्द बाबू ने तुमसे कुछ कहा नहीं?
रूपमणि ने स्वर को कठोर बनाकर कहा- जी हाँ, कहा। तुम्हें यह क्या सूझी? दो साल से कम के लिए न जाओगे!
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