कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 6 प्रेमचन्द की कहानियाँ 6प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छटा भाग
तीसरे पहर मैं खोया हुआ-सा सड़क पर खड़ा था। सहसा मैंने कजाकी को एक गली में देखा। हाँ, वह कजाकी ही था। मैं उसकी ओर चिल्लाता हुआ दौड़ा। पर गली में उसका पता न था, न जाने किधर गायब हो गया। मैंने गली के इस सिरे तक देखा; मगर कजाकी की गन्ध तक न मिली।
घर आकर मैंने अम्माँजी से यह बात कही। मुझे ऐसा जान पड़ा कि वह यह बात सुनकर बहुत चिंतित हो गई।
इसके बाद दो-तीन दिन तक कजाकी न दिखलाई दिया। मैं भी अब उसे कुछ-कुछ भूलने लगा। बच्चे पहले जितना प्रेम करते हैं, बाद को उतने ही निष्ठुर भी हो जाते हैं; जिस खिलौने पर प्राण देते हैं, उसी को दो-चार दिन के बाद पटककर फोड़ भी डालते हैं।
दस-बारह दिन और बीत गए। दोपहर का समय था। बाबूजी खाना खा रहे थे। मैं मुन्नू के पैरों में पीतल की पैजनियाँ बाँध रहा था। एक औरत घूँघट निकाले हुए आयी, और आँगन में खड़ी हो गई। उसके कपड़े फटे हुए और मैले थे, पर गोरी सुन्दर स्त्री थी। उसने मुझसे पूछा- भैया बाबूजी कहाँ हैं?
मैंने उसके पास जाकर उसका मुँह देखते हुए कहा- तुम कौन हो-क्या बेचती हो?
औरत- कुछ बेचती नहीं हूँ तुम्हारे लिए ये कमलगट्टे लायी हूँ भैया। तुम्हें कमलगट्टे बहुत अच्छे लगते है न?
मैंने उसके हाथों से लटकती हुई पोटली को उत्सुक नेत्रों से देखकर पूछा- कहाँ से लायी हो, देखें!
औरत- तुम्हारे हरकारे ने भेजा है भैया।
मैंने उछलकर पूछा- कजाकी ने?
औरत ने सिर हिलाकर ‘हाँ’ कहा, और पोटली खोलने लगी। इतने में अम्माँजी भी रसोई से निकल आयीं। उसने अम्माँ के पैरों को स्पर्श किया। अम्माँ ने पूछा- तू कजाकी की घरवाली है?
औरत ने सिर झुका लिया।
अम्माँ- आजकल कजाकी क्या करता है ?
औरत ने रोकर कहा- बहूजी, जिस दिन से आपके पास से आटा लेकर गये हैं, उसी दिन से बीमार पड़े हैं। बस भैया-भैया किया करते हैं। भैया ही में उनका मन बसा रहता है। चौंक-चौंककर ‘भैया ! भैया !' कहते हुए द्वार की ओर दौड़ते हैं। न जाने उन्हें क्या हो गया है बहूजी। एक मुझसे कुछ कहा-न-सुना, घर से चल दिए, और एक गली में छिपकर भैया को देखते रहे। जब भैया ने उन्हें देख लिया तो भागे। तुम्हारे पास आते हुए लजाते हैं।
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