कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 6 प्रेमचन्द की कहानियाँ 6प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छटा भाग
एक महाशय- पढ़ने दीजिए, इस तहरीर में जो लुत्फ है, वह किसी दूसरी तकरीर में न होगा।
दूसरे- जादू वह जो सिर चढ़ के बोले !
तीसरे- अब जलसा बरखास्त कीजिए। मैं तो चला।
चौथा- यहां भी चलते हुए।
यशोदानन्द- बैठिए-बैठिए, पत्तल लगाये जा रहे हैं।
पहले- बेटा परमानन्द, जरा यहां तो आना, तुमने यह कागज कहां पाया ?
परमानन्द- बाबू जी ही तो लिखकर अपने मेज के अन्दर रख दिया था। मुझसे कहा था कि इसे पढ़ना। अब नाहक मुझसे खफा रहे हैं।
यशोदानन्द- वह यह कागज था कि सुअर ! मैंने तो मेज के ऊपर ही रख दिया था। तूने ड्राअर में से क्यों यह कागज निकाला ?
परमानन्द- मुझे मेज पर नहीं मिला।
यशोदान्नद- तो मुझसे क्यों नहीं कहा, ड्राअर क्यों खोला ? देखो, आज ऐसी खबर लेता हूं कि तुम भी याद करोगे। पहले यह आकाशवाणी है।
दूसरे- इसको लीडरी कहते हैं कि अपना उल्लू सीधा करो और नेकनाम भी बनो।
तीसरे- शरम आनी चाहिए। यह त्याग से मिलता है, धोखेधड़ी से नहीं।
चौथे- मिल तो गया था पर एक आंच की कसर रह गयी।
पांचवे- ईश्वर पाखंडियों को यों ही दण्ड देता है।
यह कहते हुए लोग उठ खड़े हुए। यशोदानन्द समझ गये कि भंडा फूट गया, अब रंग न जमेगा। बार-बार परमानन्द को कुपित नेत्रों से देखते थे और डंडा तौलकर रह जाते थे। इस शैतान ने आज जीती-जिताई बाजी खो दी, मुंह में कालिख लग गयी, सिर नीचा हो गया। गोली मार देने का काम किया है। उधर रास्ते में मित्र-वर्ग यों टिप्पणियां करते जा रहे थे--
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