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प्रेमचन्द की कहानियाँ 6

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9767
आईएसबीएन :9781613015049

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छटा भाग


ज्यों-ज्यों अँधेरा बढता था और सितारों की चमक तेज होती थी, मधुशाला की रौनक भी बढती जाती थी। कोई गाता था, कोई डींग मारता था, कोई अपने संगी के गले लिपटा जाता था। कोई अपने दोस्त के मुँह से कुल्हड़ लगाये देता था। वहाँ के वातावरण में सरूर था, हवा में नशा। कितने तो यहाँ आकर एक चुल्लू में मस्त हो जाते। शराब से ज्यादा वहाँ की हवा उन पर नशा करती थी। जीवन की बाधाएँ खींच लेती थीं, और कुछ देर के लिए वे भूल जाते थे कि वे जीते हैं या मरते हैं! या, न जीते हैं न मरते हैं। और ये दोनों बाप-बेटा अब भी मजे ले-लेकर चुसकियाँ ले रहे थे। सबकी निगाहें इनकी ओर जमी हुई थीं। दोनों कितने भाग्य के बली हैं। पूरी बोतल बीच में है। भरपेट खाकर माधव ने बची हुई पूरियों का पत्तल उठाकर एक भिखारी को दे दिया, जो खडा इनकी ओर भूखी आँखों से देख रहा था। और देने के गौरव, आनन्द और उल्लास का उसने अपने जीवन में पहली बार अनुभव किया।

घीसू ने कहा- ले, जा खूब खा और आशीर्वाद दे! जिसकी कमाई है, वह तो मर गई। पर तेरा आशीर्वाद उसे जरूर पहुँचेगा। रोयें-रोयें से आशीर्वाद दे; बड़ी गाढ़ी कमाई के पैसे हैं! माधव ने फिर आसमान की तरफ देखकर कहा- वह वैकुण्ठ में जायेगी दादा, वह वैकुण्ठ की रानी बनेगी।

घीसू खड़ा हो गया और जैसे उल्लास की लहरों में तैरता हुआ बोला- हाँ, बेटा वैकुण्ठ में जायेगी। किसी को सताया नहीं, किसी को दबाया नहीं। मरते-मरते हमारी जिन्दगी की सबसे बड़ी लालसा पूरी कर गई। वह न वैकुण्ठ में जायेगी तो क्या ये मोटे-मोटे लोग जाएंगे, जो गरीबों को दोनों हाथों से लूटते हैं और अपने पाप को धोने के लिए गंगा में नहाते हैं और मन्दिरों में जल चढाते हैं!

श्रद्धालुता का यह रंग तुरन्त ही बदल गया। अस्थिरता नशे की खासियत है। दु:ख और निराशा का दौरा हुआ। माधव बोला- मगर दादा, बेचारी ने जिन्दगी में बड़ा दु:ख भोगा। कितना दु:ख झेलकर मरी! वह आँखों पर हाथ रखकर रोने लगा, चीखें मार-मारकर।

घीसू ने समझाया- क्यों रोता है बेटा, खुश हो कि वह माया-जाल से मुक्त हो गई। जंजाल से छूट गई। बड़ी भाग्यवान थी जो इतनी जल्द माया-मोह के बन्धन तोड़ दिये। और दोनों खड़े होकर गाने लगे- ठगिनी क्यों नैना झमकावै? ठगिनी! फिर दोनों नाचने लगे। उछले भी, कूदे भी। गिरे भी, मटके भी। भाव भी बनाये, अभिनय भी किये और आखिर नशे से मदमस्त होकर वहीं गिर पडे।

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6. करिश्मा-ए-इंतिकाम (अद्भुत प्रतिशोध)

क़रीब बीस साल गुज़रे, बुंदेलखंड के एक जिले में शिवनाथ नाम का एक खँगार रहता था। बड़ा गरीब, ईमानदार, कुश्ती और पटे में कुशल। क़रीब के थाने में तीन रुपया माहवार वेतन पर चौकीदारी का काम करता था। यही उसकी जीविका का साधन था, मगर. वे सस्ती के दिन थे। उसकी बड़ी निश्चिंतता से निभती जाती थी।

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