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प्रेमचन्द की कहानियाँ 6

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9767
आईएसबीएन :9781613015049

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छटा भाग


रात ज्यों-त्यों गुजरी। सबेरा होते ही शिवनाथ ने एक हाथ में इस कटे सिर को लटकाया और दूसरे में खून से लथ-पथ गँड़ास लिए हुए अपने थाने की तरफ़ चला और थानेदार साहब के रू-ब-रू वह सिर रखकर बोला- ''आपसे जो इंसाफ़ न हो सका, वह इस तलवार ने किया। लीजिए, यह सर हाज़िर है। आज से शिवनाथ खँगार पुलिस का दुश्मन है। निकल आए जिसे कुछ हौसला हो। शिवनाथ ललकार कर थाने से जाता है। यह न कहना, चुपके से निकल गया।''

बीस जवान बैठे यह ललकार सुनते रह गए, मगर किसी की हिम्मत न पड़ी कि उस झल्लाए हुए खँगार को रोक ले।

शिवनाथ ने चारों तरफ़ ऊधम मचाना शुरू किया। कहीं इस गाँव में आग लगाता, कहीं उस गाँव में डाका मारता। उसे रुपए-पैसे की भूख न थी, उसे नंबरदारों के खून की प्यास थी। कितने ही नंबरदारों के घर बेचिराग हो गए। रफ्ता-रफ्ता उसकी एक गिरोह कायम हो गई। शिवनाथ के नाम से लोग थर्राने लगे। एक अकेले व्यक्ति ने सारे जिले में हलचल डाल दी। सरेशाम ही से घरों के दरवाजे बंद हो जाते, रास्ता चलना दुश्वार हो गया। जहाँ देखिए, शिवनाथ मौजूद है। आज यहाँ डाका तो कल यहाँ से पचास मील पर आग लगाई। बड़े-बड़ों का सिर नीचा हो गया। दिन-दहाड़े उसका पैग़ाम पहुँचता कि शिवनाथसिंह का फ़लाँ मुकाम पर पड़ाव है, तुम उसकी दावत का सामान वहाँ भिजवा देना, वर्ना बुरा होगा। जिसने आज्ञा का उल्लंघन किया, उसकी जान की खैर न थी। उसकी हिम्मत और ताकत की रिवायतें सुनकर लोग दंग रह जाते थे। दाँतों में तलवार दबाकर हाथी के मस्तक पर जा बैठना उसके नज़दीक एक अदना-सी बात थी और वह चोरों की तरह छिपकर न रहता। रातों को मैदान में उसकी महफ़िलें सुसज्जित होतीं और पहाड़ियाँ नगमों की सदाओं से गूँजतीं। तीन रुपए का चौकीदार सेठ-साहूकारों और बड़े-बड़े जमीदारों से राजस्व, कर लेने लगा।

एक दिन शिवनाथ ने एक धनवान अहीर के घर पर डाका मारा। जब मालो-असबाब लेकर चलने लगे तो नौजवान अहीर उसके सामने आकर खड़ा हो गया और बोला- ''गुरु जी, मेरी जमा-जथा तो तुम लिए जाते हो, मैं कहाँ रहूँ? मुझे भी साथ लेते चलो।''

शिवनाथ उसका चेहरा-मोहरा, डील-डौल देखकर दंग रह गया। मर्द नहीं, शेर था। शेर की गर्दन, गैंडे का सीना, गोया बदन में सेंदुर भरा हो। बोला- ''सच कहते हो?''

अहीर- ''हाँ!''

शिवनाथ- ''तुम्हारा नाम क्या है?''

अहीर- ''दंगल''

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