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प्रेमचन्द की कहानियाँ 7

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :152
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9768
आईएसबीएन :9781613015056

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सातवाँ भाग


माँ ने गभ्भीरता से कहा- नहीं बेटा दिल्लगी नहीं कर रही। दिल से कह रही हूँ। माँ का दिल कितना नाजुक होता है, इसका अन्दाजा तुम नहीं कर सकते। तुम्हें इतने बड़े खतरे में अकेला छोड़कर मैं घर नहीं बैठ सकती। जब तक मुझे कुछ नहीं मालूम था, दूसरी बात थी। लेकिन अब यह बातें जान लेने के बाद मैं तुमसे अलग नहीं रह सकती। मैं हमेशा तुम्हारे बग़ल में रहूँगी और अगर कोई ऐसा मौक़ा आया तो तुमसे पहले मैं अपने को कुर्बान करूँगी। मरते वक्त तुम मेरे सामने होगे। मेरे लिए यही सबसे बड़ी खुशी है। यह मत समझो कि मैं नाजुक मौक़ों पर डर जाऊंगी, चीखूंगी, चिल्लाऊंगी, हरगिज नहीं। सख्त से सख्त खतरों के सामने भी तुम मेरी जबान से एक चीख न सुनोगे। अपने बच्चे की हिफाज़त के लिए गाय भी शेरनी बन जाती है।

धर्मवीर ने भक्ति से विहृल होकर माँ के पैरों को चूम लिया। उसकी दृष्टि में वह कभी इतने आदर और स्नेह के योग्य न थी।

दूसरे ही दिन परीक्षा का अवसर उपस्थित हुआ। यह दो दिन बुढ़िया ने रिवाल्वर चलाने के अभ्यास में खर्च किये। पटाखे की आवाज़ पर कानों पर हाथ रखने वाली, अहिंसा और धर्म की देवी, इतने साहस से रिवाल्वर चलाती थी और उसका निशाना इतना अचूक होता था कि सभा के नौजवानों को भी हैरत होती थी।

पुलिस के सबसे बड़े अफ़सर के नाम मौत का परवाना निकला और यह काम धर्मवीर के सुपुर्द हुआ।

दोनों घर पहुँचे तो माँ ने पूछा- क्यों बेटा, इस अफ़सर ने तो कोई ऐसा काम नहीं किया फिर सभा ने क्यों उसको चुना?

धर्मवीर माँ की सरलता पर मुस्कराकर बोला- तुम समझती हो हमारे कांस्टेबिल और सब-इंस्पेक्टर और सुपरिण्टेण्डैण्ट जो कुछ करते हैं, अपनी खुशी से करते हैं? वे लोग जितने अत्याचार करते हैं, उनके यही आदमी जिम्मेदार हैं। और फिर हमारे लिए तो इतना ही काफ़ी है कि वह उस मशीन का एक खास पुर्जा है जो हमारे राष्ट्र को चरम निर्दयता से बर्बाद कर रही है। लड़ाई में व्यक्तिगत बातों से कोई प्रयोजन नहीं, वहां तो विरोध पक्ष का सदस्य होना ही सबसे बड़ा अपराध है।

माँ चुप हो गयी। क्षण-भर बाद डरते-डरते बोली- बेटा, मैंने तुमसे कभी कुछ नहीं माँगा। अब एक सवाल करती हूँ, उसे पूरा करोगे?

धर्मवीर ने कहा- यह पूछने की कोई जरूरत नहीं अम्मा, तुम जानती हो मैं तुम्हारे किसी हुक्म से इन्कार नहीं कर सकता।

माँ- हां बेटा, यह जानती हूँ। इसी वजह से मुझे यह सवाल करने की हिम्मत हुई। तुम इस सभा से अलग हो जाओ। देखो, तुम्हारी बूढ़ी माँ हाथ जोड़कर तुमसे यह भीख माँग रही है।

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