कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 7 प्रेमचन्द की कहानियाँ 7प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सातवाँ भाग
उसके पास ही कई औरतें बैठी हुई थीं। एक ने पूछा, ''क्यों बहन, तुम्हारे घर का भी कोई लड़का पकड़ा गया है?''
रामेश्वरी अपनी फ़िक्रों में डूबी हुई थी। कुछ न बोली।
उस औरत ने फिर कहा, ''क्या कहूँ? न जाने किस पापी ने खून किया। आप तो मुँह पर स्याही लगाकर छुप रहा और हम लोगों के मत्थे गई।''
कई औरतें रो रही थीं। रामेश्वरी भी रोने लगी।
एक बूढ़ी औरत उसे समझाने लगी, ''बहन, चुप हो जाओ। जो हमारी क़िस्मत में लिखा है, वही होगा। मेरा बेटा बिलकुल बेक़सूर पकड़ा गया है। काँग्रेस में काम करता था। तुम्हारा कौन गिरफ्तार है?''
रामेश्वरी ने उसे भी कुछ जवाब न दिया। बार-बार लोगों से पूछती थी, ''साहब कब तक आएँगे?''
दो बजे साहब की मोटर आई। इजलास में हलचल मच गई। ज्यों ही साहब कुर्सी पर वैठे, सरकारी वकील ने यह खून का मुक़दमा पेश कर दिया। पुलिस के अफ़सर आ गए। मुलजिम भी सामने खड़े कर दिए गए।
ऐन उसी वक्त रामेश्वरी ने इजलास में रू-ब-रू आकर सलाम किया, और साफ़ लफ्जों में बोली, ''हुजूर! इस मुक़द्दमे के पेश होने से पहले मैं कुछ अर्ज़ करना चाहती हूँ।
सब-के-सब उसकी तरफ़ हैरत से देखने लगे। कमरे में सन्नाटा छा गया।
साहब ने उसकी तरफ़ तेज निगाहों से देखकर कहा, ''क्या बात है?''
रामेश्वरी, ''मैं इसलिए आपके सामने आई हूँ कि इस मुक़द्दमे का सच्चा हाल बयान करूँ। सार्जेंट का खून करने वाला मेरा बेटा है। यह तमाम मुलजिम बेगुनाह हैं।
साहब ने चकित होकर पूछा, ''तुम अपने होश में हो या नहीं?''
रामेश्वरी ने कहा, ''मैं अपने होश में हूँ और बिलकुल सच कहती हूँ। सार्जेंट को मेरे बेटे ने मारा है। उसका नाम विनोद बिहारी है। मेरे घर में उसका फोटो रखा हुआ है। वह उसी दिन से लापता हो गया है। मैं अपने होश में हूँ। अपने बेटे से मेरी कोई दुश्मनी नहीं है। मैं उसे उसी तरह प्यार करती हूँ जैसे हर एक बेवा अपने इकलौते बेटे को। एक हफ्ता पहले वही मेरा सब कुछ था, लेकिन जब मेरे हरचंद मना करने पर भी उसने यह खून किया तो मैंने समझ लिया मेरे कोई बेटा न था। उसकी जान बचाने के लिए मैं इतने घर बर्बाद न होने दूँगी। मेरी इन बहनों को भी तो अपनी औलाद उतनी ही प्यारी है। उन्हें बेऔलाद बनाकर मैं औलाद वाली नहीं रहना चाहती। मैंने असल वाक़िया बयान कर दिया। इंसाफ़ आपके हाथ में है।''
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