कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 7 प्रेमचन्द की कहानियाँ 7प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सातवाँ भाग
राजा साहब ने फिर प्याला मुंह से लगाया, और बोले- ‘सरदार साहब, मेरा जोश ठंडा हो गया। जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे। जहां प्रमिका प्रेमी के हाथों कत्ल हो, वहां समझ लीजिए कि प्रेम न था, केवल विषय-लालसा थी, में वहां से चला आया, लेकिन चित्त किसी तरह शान्त नहीं होतां तबसे अब तक मैंने क्रोध को जीतने की भरसक कोशिश की, मगर असफल रहा। जब तक वह शैतान जिन्दा है, मेरे पहलू में एक कांटा खटकता रहेगा, मेरी छाती पर सांप लौटता रहेगा। वही काला नाग फन उठाये हुए उस रत्न-राशि पर बैठा हुआ है, वही मेरे और सरफराज के बीच में लोहे की दीवार बना हुआ है, वही इस दूध की मक्खी है। उस सांप का सिर कुचलना होगा, जब तक मैं अपनी आँखों से उसकी धज्जियां बिखरते न देखूंगा। मेरी आत्मा को संतोष न होगा। परिणाम की कोई चिन्ता नहीं कुछ भी हो, मगर उस नर-पिशाच को जहन्नुम दाखिल करके दम लूंगा।’
यह कहकर राजा साहब ने मेरी ओर पूर्ण पूर्ण नेत्रों से देखकर कहा- बतलाइए आप मेरी क्या मदद कर सकते है?
मैंने विस्मय से कहा- मैं?
राजा साहब ने मेरा उत्साह बढाते हुए कहा- ‘हां, आप। आप जानते हैं, मैंने इतने आदमियों को छोड़कर आपकों क्यों अपना विश्वासपात्र बनया और क्यों आपसे यह भिक्षा माँगी? यहां ऐसे आदमियों की कमी नहीं है, जो मेरा इशारा पाते ही उस दुष्ट के टुकड़े उड़ा देंगे, सरे बाजार उसके रक्त से भूमि को रंग देंगे। जी हां, एक इशारे से उसकी हड्डियों का बुरादा बना सकता हूं।, उसके नहों में कीलें ठुकवा सकता हूं।, मगर मैंने सबको छोड़कर आपकों छांटा, जानते हो क्यों? इसलिए कि मुझे तुम्हारे ऊपर विश्वास है, वह विश्वास जो मुझे अपने निकटतम आदमियों पर भी नहीं, मैं जानता हूं। कि तुम्हारे हृदय में यह भेद उतना ही गुप्त रहेगा, जितना मेरे। मुझे विश्वास है कि प्रलोभन अपनी चरम शक्ति का उपयोग करके भी तुम्हें नहीं डिगा सकता। पाशविक अत्याचार भी तुम्हारे अधरों को नहीं खोल सकते, तुम बेवफाई न करोगे, दगा न करोगे, इस अवसर से अनुचित लाभ न उठाओगे, जानते हो, इसका पुरस्कार क्या होगा? इसके विषय में तुम कुछ भी शंका न करो। मुझमें और चाहे कितने ही दुर्गुण हों, कृतघ्नता का दोष नहीं है। बड़े से बड़ा पुरस्कार जो मेरे अधिकार में है, वह तुम्हें दिया जाएगा। मनसब, जागीर, धन, सम्मान सब तुम्हारी इच्छानुसार दिये जाएंगे। इसका सम्पूर्ण अधिकार तुमको दिया जाएगा, कोई दखल न देगा। तुम्हारी महत्वाकांक्षा को उच्चतम शिखर तक उड़ने की आजादी होगी। तुम खुद फरमान लिखोगे और मैं उस पर आँखें बंद करके दस्तखत करूंगा; बोलो, कब जाना चाहते हो? उसका नाम और पता इस कागज पर लिखा हुआ है, इसे अपने हृदय पर अंकित कर लो, और कागज फाड़ डालो। तुम खुद समझ सकते हो कि मैंने कितना बड़ा भार तुम्हारे ऊपर रखा है। मेरी आबरू, मेरी जान, तुम्हारी मुट्ठी में हैं। मुझे विश्वास है कि तुम इस काम को सुचारु रूप से पूरा करोगे। जिन्हें अपना सहयोगी बनाओगे, वे भरोसे के आदमी होंगे। तुम्हें अधिकतम बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता और धैर्य से काम लेना पड़ेगा। एक असंयत शब्द, एक क्षण का विलम्ब, जरा-सी लापरवाही मेरे और तुम्हारे दोनों के लिए प्राणघातक होगी। दुश्मन घात में बैठा हुआ है, ’कर तो डर, न कर तो डर’ का मामला है। यों ही गद्दी से उतारने के मंसूबे सोचे जा रहे हैं, इस रहस्य के खुल जाने पर क्या दुर्गति होगी, इसका अनुमान तुम आप कर सकते हो। मैं बर्मा में नजरबन्द कर दिया जाऊंगा, रियासत गैरों के हाथ में चली जाएगी और मेरा जीवन नष्ट हो जाएगा। मैं चाहता हूं कि आज ही चले जाओ। यह इम्पीरियल बैंक का चेक बुक है, मैंने चेकों पर दस्तखत कर दिए हैं, जब जितने रुपयों की जरूरत हो, ले लेना।‘
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