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प्रेमचन्द की कहानियाँ 8

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9769
आईएसबीएन :9781613015063

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का आठवाँ भाग


बेबस गोरा ने इस नौजवान से ज्यादा सवाल व जवाब करना फ़िजूल समझा। रोते हुए उसने अपनी खुशरंग साड़ी उतार कर उसे दे दी और जल्दी से उस साफ़े को, जिसे नौजवान ने इसकी तरफ़ फेंक दिया था, पहन लिया। तब उस ज़ालिम ने साड़ी पहनी और लंबा घूँघट निकालकर किश्ती की तरफ़ चला। यकायक कुछ सोच कर वह मुड़ा और तेजी से लपक कर गोरा के हाथ से डंडा छीन लिया। गोरा खौफ़ से बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी और तब नौजवान ने इस बेहोशी को देर तक क़ायम रखने के लिए जोर से एक डंडा उसके सिर पर मारा और किश्ती पर बैठकर एक तरफ़ को चल दिया। ''अब अगर तुम्हारा बाप आया भी तो तुम न बता सकोगी कि मैं कौन हूँ और किधर गया।''

नौजवान डाकू तेजी से डाँडा चलाता हुआ चार मील तक चला आया और तब उसे किनारे पर एक गाँव के आसार नज़र आए। जहाँ-तहाँ धुँधली रोशनी के चिराग़ टिमटिमा रहे थे, जिनका अक्स पानी में हिलता हुआ मालूम होता था। घाट पर कुछ औरतें पानी भर रही थीं। कुछ नहा रही थीं। मल्लाहों के झोपड़ों में चूल्हे जल रहे थे। किश्तियाँ कीलों से बँधी हुई पानी में हिलकोरे ले रही थीं। नौजवान ने यहाँ रात बसर करने की नीयत से किश्ती किनारे पर लगा दी और उसे एक कील से बाँधकर लपकता हुआ गाँव में जा पहुँचा। गाँवों में प्राय: लोग सरे-शाम ही से सो जाया करते हैं। हाँ, जगह-जगह बूढ़े आदमी बैठे हुए अपने हुक्के से दिल बहलाते हुए नज़र आते थे, जिससे ज्यादा हमदर्द और सहानुभूति रखने वाला वृद्धावस्था में और कोई नहीं हो सकता। डाकू की मंशा यह थी कि अँधेरे में कोई भला मानस मिल जाए तो उस पर हाथ साफ़ करूँ कि वहीं ठंडा हो जाए और क़िस्मत जो कुछ दिलाए उसे लेकर नदी के किनारे अपनी किश्ती पर जा बैठूँ और दो घंटे रात रहे, फिर उठकर आगे को चल दूँ। वह इन्हीं मंसूबों में था कि सहसा एक नौजवान लालटेन हाथ में लिए सामने से आता हुआ दिखाई दिया। उसने इस जनाने डाकू को देखा तो चौंक पड़ा और बोला- ''कौन है गोरा? तुम यहाँ कहाँ? खैरियत तो है?''

यह वही आदमी था, जिससे गोरा की मँगनी हुई थी। वह खुशरंग साड़ी जो इस वक्त एक क़ातिल के गुनाहों पर परदा डाले हुए थी, उसने गोरा के लिए भेजी थी। गाँव में इस ढंग की साड़ी किसी दूसरी औरत के पास नहीं थी। इसलिए उसे तत्क्षण ख्याल गुजरा कि शायद यह गोरा है। उसका बाप किसी काम से यहाँ आया होगा। उसके साथ वह भी चली आई होगी। नौजवान डाकू यह अवाज सुनते ही चौंका और क़दम तेज कर दिए, ताकि किसी अँधेरी गली में पहुँच जाए, मगर इस देहाती नौजवान ने लपक उसका हाथ पकड़ लिया और बोला- ''गोरा! इस वक्त मत शरमाओ। तुम यहाँ कैसे आई? तुम्हारे दादा भी आए हैं? ''

डाकू ने अपने हाथों को झटका दिया, ताकि भाग जाए।

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