कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 9 प्रेमचन्द की कहानियाँ 9प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का नौवाँ भाग
रामेश्वरी को एक ही क्षण में महरी पर दया आ गई ! बोली, 'तू भूखों मर जायगी, तो मेरा काम कौन करेगा?'
महरी- 'क़ाम कराना होगा, खिलाइएगा; न काम कराना होगा, भूखों मारिएगा। आज से आकर आप ही के द्वार पर सोया करूँगी।'
रामेश्वरी- 'सच कहती हूँ, आज तूने बड़ा नुकसान कर डाला।'
महरी- 'मैं तो आप ही पछता रही हूँ सरकार।'
रामेश्वरी- 'जा गोबर से चौका लीप दे, मटकी के टुकड़े दूर फेंक दे।और बाजार से घी लेती आ।'
महरी ने खुश होकर चौका गोबर से लीपा और मटकी के टुकड़े बटोर रही थी कि कुन्दनलाल आ गए, और हाँड़ी टूटी देखकर बोले, 'यह हाँड़ी कैसे टूट गई?'
रामेश्वरी ने कहा, महरी उठाकर ऊपर रख रही थी, उसके हाथ से छूट पड़ी।'
कुन्दनलाल ने चिल्लाकर कहा, 'तो सब घी बह गया?'
'और क्या कुछ बच भी रहा !'
'तुमने महरी से कुछ कहा, नहीं?'
'क्या कहती? उसने जान-बूझकर तो गिरा नहीं दिया।'
'यह नुकसान कौन उठायेगा?'
'हम उठायेंगे, और कौन उठायेगा। अगर मेरे ही हाथ से छूट पड़ती तो क्या हाथ काट लेती।'
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