कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 9 प्रेमचन्द की कहानियाँ 9प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का नौवाँ भाग
केसर ने मन-ही-मन प्रसन्न होकर कहा क़ुंजी उनके सामने फेंक देना कि जो चीज चाहो निकाल ले जाओ।
'साले झेंप जायेंगे।'
'मुँह में कालिख लग जायेगी।'
'घमण्ड तो देखो कि तिथि तक बता दी। यह नहीं समझे कि अंग्रेजी सरकार का राज है। तुम डाल-डाल चलो, तो वह पात-पात चलते हैं।'
'समझे होंगे कि धमकी में आ जायेंगे।'
तीन कानिस्टिबिलों ने आकर सन्दूकचे और सेफ निकालने शुरू किये।
एक बाहर सामान को मोटर पर लाद रहा था और एक हरेक चीज को नोटबुक पर टाँकता जाता था। आभूषण, मुहरें, नोट, रुपये, कीमती कपड़े, साड़ियाँ; लहँगे, शाल-दुशाले, सब कार में रख दिये। मामूली बरतन, लोहे-लकड़ी के सामान, फर्श आदि के सिवा घर में और कुछ न बचा। और डाकुओं के लिए ये चीज़ें कौड़ी की भी नहीं। केसर का सिंगारदान खुद सेठजी लाये और हेड के हाथ में देकर बोले इसे बड़ी हिफाजत से रखना भाई ! हेड ने सिंगारदान लेकर कहा मेरे लिए एक-एक तिनका इतना ही कीमती है।
सेठजी के मन में एक सन्देह उठा। पूछा, ख़जाने की कुंजी तो मेरे ही पास रहेगी?
'और क्या, यह तो मैं पहले ही अर्ज कर चुका; मगर यह सवाल आपके दिल से क्यों पैदा हुआ?'
'यों ही, पूछा था' सेठजी लज्जित हो गये।
'नहीं, अगर आपके दिल में कुछ शुबहा हो, तो हम लोग यहाँ भी आप की खिदमत के लिए हाजिर हैं। हाँ, हम जिम्मेदार न होंगे।'
'अजी नहीं हेड साहब, मैंने यों ही पूछ लिया था। यह फिहरिस्त तो मुझे दे दोगे न?'
'फिहरिस्त आपको थाने में दरोगाजी के दस्तखत से मिलेगी। इसका क्या एतबार?'
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