कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 9 प्रेमचन्द की कहानियाँ 9प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का नौवाँ भाग
'आप बिलकुल ठीक कहते हैं, सेठजी ! जिन्दगी का मजा सन्तान से है। जिसके आगे अन्धेरा है, उसके लिए धन-दौलत किस काम की?'
'ईश्वर की यही इच्छा है तो आदमी क्या करे। मेरा बस चलता, तो मायाजाल से निकल भागता खाँ साहब, एक क्षण भी यहाँ न रहता, कहीं तीर्थस्थान में बैठकर भगवान् का भजन करता। मगर करूँ क्या? मायाजाल तोड़े नहीं टूटता।'
'एक बार दिल मजबूत करके तोड़ क्यों नहीं देते? सब उठाकर गरीबों को बाँट दीजिए। साधु-सन्तों को नहीं, न मोटे ब्राह्मणों को बल्कि उनको, जिनके लिए यह जिन्दगी बोझ हो रही है, जिसकी यही एक आरजू है कि मौत आकर उनकी विपत्ति का अन्त कर दे।'
'इस मायाजाल को तोड़ना आदमी का काम नहीं है, खाँ साहब ! भगवान् की इच्छा होती है, तभी मन में वैराग्य आता है।'
'आज भगवान् ने आपके ऊपर दया की है। हम इस मायाजाल को मकड़ी के जाले की तरह तोड़कर आपको आजाद करने के लिए भेजे गये हैं। भगवान् आपकी भक्ति से प्रसन्न हो गये हैं और आपको इस बन्धन में नहीं रखना चाहते, जीवन-मुक्त कर देना चाहते हैं।'
'ऐसी भगवान् की दया हो जाती, तो क्या पूछना खाँ साहब !'
'भगवान् की ऐसी ही दया है सेठजी, विश्वास मानिए। हमें इसीलिए उन्होंने मृत्युलोक में तैनात किया है। हम कितने ही मायाजाल के कैदियों की बेड़ियाँ काट चुके हैं। आज आपकी बारी है।'
सेठजी की नाड़ियों में जैसे रक्त का प्रवाह बन्द हो गया। सहमी हुई आँखों से सिपाहियों को देखा। फिर बोले, आप बड़े हँसोड़ हो, खाँ साहब?
'हमारे जीवन का सिद्धान्त है कि किसी को कष्ट मत दो; लेकिन ये रुपये वाले कुछ ऐसी औंधी खोपड़ी के लोग हैं कि जो उनका उद्धार करने आता है, उसी के दुश्मन हो जाते हैं। हम आपकी बेड़ियाँ काटने आये हैं; लेकिन अगर आपसे कहें कि यह सब जमा-जथा और लता-पता छोड़कर घर की राह लीजिए, तो आप चीखना-चिल्लाना शुरू कर देंगे। हम लोग वही खुदाई फौजदार हैं, जिनके इत्तलाई खत आपके पास पहुँच चुके हैं।'
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