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प्रेमचन्द की कहानियाँ 9

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9770
आईएसबीएन :9781613015070

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का नौवाँ भाग


पादरी साहब इस भोलेपन पर मुसकराके बोले– मेरे पास इससे भी अच्छी-अच्छी चीजे हैं।

इस पर साधोराय ने कहा– अब मैं रोज तुम्हारे पास आऊँगा। माँ के पास ऐसी अच्छी चीजें कहाँ? वह मुझे रोज चने की रोटियाँ खिलाती है।

उधर देवकी ने रोटियाँ बनायीं और साधो को पुकारने लगी। साधो ने माँ के पास जाकर कहा– मुझे साहब ने अच्छी-अच्छी चीजें खाने को दी हैं। साहब बड़े अच्छे हैं।

देवकी ने कहा– मैंने तुम्हारे लिए नरम-नरम रोटियां बनायी हैं आओ तुम्हें खिलाऊँ।

साधो बोला– अब मैं न खाऊँगा। साहब कहते थे कि मैं तुम्हें रोज अच्छी-अच्छी चीजें खिलाऊँगा। मैं अब उनके साथ रहा करूँगा। माँ ने समझा कि लड़का हँसी कर रहा है। उसे छाती से लगाकर बोली क्यों बेटा, हमको भूल जाओगे? देखो, मैं तुम्हें कितना प्यार करती हूँ!

साधो तुतलाकर बोला– तुम तो मुझे रोज चने की रोटियाँ दिया करती हो, तुम्हारे पास तो कुछ नहीं है। साहब मुझे केले और आम खिलाएंगे। यह कहकर वह फिर खेमे की ओर भागा और रात को वहीं सो रहा।

पादरी मोहनदास का पड़ाव वहाँ तीन दिन रहा। साधो दिन-भर उन्हीं के पास रहता। साहब ने उसे मीठी दवाइयाँ दीं। उसका बुखार जाता रहा। वह भोले-भाले किसान यह देखकर साहब को आशार्वाद देने लगे। लड़का चंगा हो गया और आराम से है। साहब को  परमात्मा सुखी रखे। उन्होंने बच्चे की जान रख ली।

चौथे दिन रात को ही वहाँ से पादरी साहब ने कूच किया। सुबह को जब देवकी उठी, तो साधो का यहाँ पता न था। उसने समझा, कहीं टपके ढूँढ़ने गया होगा; किन्तु थोड़ी देर देखकर उसने जादोराय से कहा– लल्लू यहाँ नहीं है।

उसने भी यही कहा– कहीं टपके ढूँढ़ता होगा।

लेकिन जब सूरज निकल आया और काम पर चलने का वक्त हुआ, तब जादोराय को कुछ संशय हुआ। उसने कहा– तुम यहीं बैठी रहना, मैं अभी उसे लिये आता हूं।

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