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प्रेमचन्द की कहानियाँ 9

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9770
आईएसबीएन :9781613015070

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का नौवाँ भाग


माया ने पिस्तौल जमीन पर रख दिया और सिर झुकाकर सोचने लगी। उसका नारी-हृदय अत्याचार का यह वृत्तांत सुनकर कातर हो उठा। वह जब किसी कोचवान को देखती थी कि घोड़े को बेतरह पीट रहा है तो उसे क्रोध आता था कि कोचवान को कोड़े लगवाए। कोई पुरुष अपनी स्त्री को पीटता था तो यह खबर सुनकर उसका चित्त उस स्त्री के लिए दुःखी हो जाता था, लेकिन जब उसे मालूम हो जाता था कि घोड़ा अड़ियल है और स्त्री कुलटा, तो उसका क्रोध उलट पड़ता था। यही दशा इस समय भी उसके मन की हो रही थी।

ईश्वरदास ने फिर कहना शुरू किया- ''यह न समझिए कि मैं आपके पिस्तौल से डरकर मि. व्यास पर झूठे आक्षेप कर रहा हूँ। मैंने कभी जीवन की परवाह नहीं की। मेरा कौन रोने वाला बैठा हुआ है, जिसके लिए मौत से डरूँ? अगर यह माजरा सुनकर भी आप समझती हैं कि मैंने मि. व्यास के साथ अन्यास किया है, तो पिस्तौल उठाकर इस जीवन का अंत कर दीजिए। मैं जरा भी न झिझकूँगा। पुलिस की आँखों में तो मैं खूनी हूँ लेकिन मैं पुलिस की परवाह नहीं करता। जनता की आंखों में मैं बेकसूर हूँ। अगर पुलिस मेरे खिलाफ़ कोई गवाह चाहे तो नहीं पा सकती। मैं खुद अपने को खूनी नहीं समझता। वस आप ही के ऊपर फ़ैसला है। आपका फ़ैसला अगर मेरे खिलाफ़ है, तो मैं आपके सामने यहीं इसी पिस्तौल से अपना अंत कर लूँगा।''

यह कहते हुए ईश्वरदास ने जमीन से पिस्तौल उठा लिएया और उसकी नली अपनी तरफ़ फेरकर माया की तरफ़ देखने लगा।

माया ने सिर उठाकर नरमी से कहा- ''पिस्तौल रख दीजिए।''

''मैं आपका फ़ैसला सुनना चाहता हूँ।''

''इसका फ़ैसला ईश्वर करेंगे। मुझे अब आपसे कुछ नहीं कहना है। मैं उन्हें ऐसा न समझती थी। आप मुझे उन घरों का पता बता दीजिए, जो मेरे पति के हाथों बरबाद हुए हैं। शायद मैं उनके अत्याचार का कुछ प्रायश्चित्त कर सकूँ।''

समाप्त

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