कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 10 प्रेमचन्द की कहानियाँ 10प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दसवाँ भाग
यथार्थत: उसके बालोचित चेहरे पर ऐसा मुलम था कि क्या मजाल जरा भी हँसी आ जाए। इस शान से वह गाँव में दाखिल हुआ। लड़की ने उसकी आवाज़ सुनी, ''रेबडी कड़ाकेदार'', और सब-के-सब दौड़े आन-की-आन में। फुंदन उत्सुक सूरतों से घिरा हुआ हो गया, उसी तरह जैसे जतीन हो जाया करता था। किसी ने न पूछा, यह क्या स्वाँग है? दिल ने दिल की बात समझाई। मिठाइयों की खरीद होने लगी। ठिकसे के पैसे थे, कंकड़ और बजरियों की मिठाई। इस खेल में लुत्फ कहीं ज्यादा था।
मुन्नू ने एक ठीकरा देकर कहा, ''जतीन, एक पैसे की खुट्टियाँ दे दो।''
जतीन ने एक पत्ते में तीन-चार कंकड़ रखकर दे दिए।
खुट्टियों में इतनी मिठास, इतना स्वाद कब हासिल हुआ था?
3. खौफ़े-रुसवाई (बदनामी का डर)
एक पूर्णत: सुसज्जित कमरे में एक कृशांग युवती सुंदर वस्त्र पहने और कपोलों पर हाथ रखे बैठी है। वह किसी गहरे ख्याल में निमग्न है, मगर जाहिरा इस ख्याल में गौर की तल्लीनता नहीं है, बल्कि बेचैनी और परेशानी के चिह्न उसके हसीन चेहरे पर प्रकट हैं।
सरला, बाबू धीरेन चौधरी की बीवी है। धीरेन कलकत्ते के एक होनहार बैरिस्टर थे। सज्जन और निर्धनों के सहायक, फ़ैशेनबिल सोसाइटी से बचने वाले, न वील से रुचि, न घुड़-दौड़ के आशिक़। वह थियेटरों और पोलिटिकल जलसों में बहुत कम शरीक होते। उनका अधिकतर समय अपने मुक़दमात की जाँच-पड़ताल में व्यतीत होता था। उनके दोस्तों का हलका निहायत सीमित था, जहाँ ऊपरी दिखावट, आडंबर के बदले सरलता और दोस्ती के रस्में बरते जाते थे। धीरेन को फ़ैशन से इंतहा दर्जे की नफ़रत थी। बावजूद इसके कि कलकत्ते का हर एक कोना पोलिटिकल खबरों से गूँज रहा था, मगर धीरेन को उनसे सिर्फ़ इतनी हमदर्दी थी कि अखबारों में उनका चर्चा देख लिया करता था। पोलिटिक्स से उसे लगाव न था। वह अपने दोस्तों में एक सीधा, प्रसन्नचित्त आदमी मशहूर था। इसके विपरीत सरला नेशनलिस्ट विश्वासों की औरत थी। उसने आला दर्जे की अंग्रेजी तालीम पाई थी सौर हिंदुस्तान के पोलिटिकल और आर्थिक मामलात से उसे बहुत ज्यादा दिलचस्पी थी। एक बार वह अपने कॉलेज की लेडी प्रिंसिपल से सिर्फ़ इस बिना पर झगड़ पड़ी कि लेडी साहिबा ने चर्चा चलने पर हिंदुस्तानी औरत के लिए जबान से कुछ अपमानजनक शब्द निकाले थे।
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