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प्रेमचन्द की कहानियाँ 11

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :155
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9772
आईएसबीएन :9781613015094

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का ग्यारहवाँ भाग


एक जमाना वह था कि नईमा हैदर की आरजुओं की देवी थी, यह समझना मुश्किल था कि कौन तलबगार है और कौन उस तलब को पूरा करने वाला। एक तरफ पूरी-पूरी दिलजोई थी, दूसरी तरफ पूरी-पूरी रजा। तब तक़दीर ने पांसा पलटा। गुलो-बुलबुल में सुबह की हवा की शरारतें शुरू हुईं। शाम का वक्त था। आसमान पर लाली छायी हुई थी। नईमा उमंग और ताजुगी और शौक से उमड़ी हुई कोठे पर आयी। शफ़क़ की तरह उसका चेहरा भी उस वक्त खिला हुआ था। ऐन उसी वक्त वहां का सूबेदार नासिर अपने हवा की तरह तेज घोड़े पर सवार उधर से निकला, ऊपर निगाह उठी तो हुस्न का करिश्मा नजर आया कि जैसे चांद शफ़क़ के हौज में नहाकर निकला है। तेज़ निगाह जिगर के पार हुई। कलेजा थामकर रह गया। अपने महल को लौटा, अधमरा, टूटा हुआ।

मुसाहबों ने हकीम की तलाश की और तब राह-रास्म पैदा हुई। फिर इश्क की दुश्वार मंज़िलें तय हुईं। वफ़ा और हया ने बहुत बेरुखी दिखायी। मगर मुहब्बत के शिकवे और इश्क़ की कुफ्र तोड़नेवाली धमकियां आखिर जीतीं। अस्मत का खलाना लुट गया। उसके बाद वही हुआ जो हो सकता था। एक तरफ से बदगुमानी, दूसरी तरफ से बनावट और मक्कारी। मनमुटाव की नौबत आयी, फिर एक-दूसरे के दिल को चोट पहुँचाना शुरू हुआ। यहां तक कि दिलों में मैल पड़ गयी। एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गये। नईमा ने नासिर की मुहब्बत की गोद में पनाह ली और आज एक महीने की बेचैन इन्तजारी के बाद हैदर अपने जज्बात के साथ नंगी तलवार पहलू में छिपाये अपने जिगर के भड़कते हूए शोलों को नईमा के खून से बुझाने के लिए आया हुआ है।

आधी रात का वक्त था और अंधेरी रात थी। जिस तरह आसमान के हरमसरा में हुसन के सितारे जगमगा रहे थे, उसी तरह नासिर का हरम भी हुस्न के दीपों से रोशन था। नासिर एक हफ्ते से किसी मोर्चे पर गया हुआ है इसलिए दरबान गाफ़िल हैं। उन्होंने हैदर को देखा मगर उनके मुंह सोने-चांदी से बन्द थे। ख्वाजासराओं की निगाह पड़ी लेकिन वह पहले ही एहसान के बोझ से दब चुके थे। खवासों और कनीजों ने भी मतलब-भरी निगाहों से उसका स्वागत किया और हैदर बदला लेने के नशे में गुनहगार नईमा के सोने के कमरे में जा पहुँचा, जहां की हवा संदल और गुलाब से बसी हुई थी।

कमरे में एक मोमी चिराग़ जल रहा था और उसी की भेद-भरी रोशनी में आराम और तकल्लुफ़ की सजावटें नज़र आती थीं जो सतीत्व जैसी अनमोल चीज़ के बदले में खरीदी गयी थीं। वहीं वैभव और ऐश्वर्य की गोद में लेटी हुई नईमा सो रही थी।

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