कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 12 प्रेमचन्द की कहानियाँ 12प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बारहवाँ भाग
कई दिनों के बाद संध्या समय मुलिया चैनसिंह से मिली। चैनसिंह असामियों से मालगुजारी वसूल करके घर की ओर लपका जा रहा था कि उसी जगह जहाँ उसने मुलिया की बाँह पकड़ी थी, मुलिया की आवाज कानों में आयी। उसने ठिठककर पीछे देखा, तो मुलिया दौड़ी आ रही थी। बोला- क्या है मूला! क्यों दौड़ती हो, मैं तो खड़ा हूँ?
मुलिया ने हाँफते हुए कहा- कई दिन से तुमसे मिलना चाहती थी। आज तुम्हें आते देखा, तो दौड़ी। अब मैं घास बेचने नहीं जाती।
चैनसिंह ने कहा- बहुत अच्छी बात है।
'क्या तुमने कभी मुझे घास बेचते देखा है?'
'हाँ, एक दिन देखा था। क्या महावीर ने तुझसे सब कह डाला? मैंने तो मना कर दिया था।'
'वह मुझसे कोई बात नहीं छिपाता।'
दोनों एक क्षण चुप खड़े रहे। किसी को कोई बात न सूझती थी। एकाएक मुलिया ने मुस्कराकर कहा- यहाँ तुमने मेरी बाँह पकड़ी थी।
चैनसिंह ने लज्जित होकर कहा- उसको भूल जाओ मूला। मुझ पर जाने कौन भूत सवार था।
मुलिया गद्गद् कंठ से बोली- उसे क्यों भूल जाऊँ। उसी बाँह गहे की लाज तो निभा रहे हो। गरीबी आदमी से जो चाहे करावे। तुमने मुझे बचा लिया। फिर दोनों चुप हो गये।
जरा देर के बाद मुलिया ने फिर कहा- तुमने समझा होगा, मैं हँसने-बोलने में मगन हो रही थी?
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