कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 12 प्रेमचन्द की कहानियाँ 12प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बारहवाँ भाग
श्यामा ने उदासीन भाव से कहा- मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझी।
‘मैं अब भी हिन्दू हूँ। मैंने इस्लाम नहीं कबूल किया है।’
‘जानती हूँ।’
‘यह जानकर भी मुझ पर दया नहीं आती?’
श्यामा ने कठोर नेत्रों से देखा और उत्तेजित होकर बोली- तुम्हें अपने मुँह से ऐसी बातें निकालते शर्म नहीं आती। मैं उस धर्मवीर की ब्याहता हूँ, जिसने हिन्दू जाति का मुख उज्ज्वल किया है। तुम समझते हो वह मर गया? यह तुम्हारा भ्रम है। वह अमर है। मैं इस समय भी उसे स्वर्ग में देख रही हूँ। तुमने हिन्दू जाति को कलंकित किया है। मेरे सामने से दूर हो जाओ।
धर्मदास ने कुछ जवाब न दिया चुपके से उठ एक लम्बी साँस ली और एक तरफ चल दिया!
प्रातःकाल श्यामा पानी भरने जा रही थी, तब उसे रास्ते में एक लाश पड़ी हुई देखी। दो-चार गिद्ध उस पर मँडरा रहे थे। उसका हृदय धड़कने लगा। समीप जाकर देखा और पहचान गयी। यह धर्मदास की लाश थी।
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