कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 13 प्रेमचन्द की कहानियाँ 13प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेरहवाँ भाग
‘और तू इसे यों छोडक़र रुला रही है। मरेगी कि जियेगी?’
‘गोद में लिये-लिये काम कैसे करूँ हुजूर!
‘छुट्टी क्यों नहीं ले लेती!’
‘तलब कट जाती हुजूर, गुजारा कैसे होता?’
‘इसे उठा ले और घर जा। हुसेनी लौटकर आये तो इधर झाड़ू लगाने के लिए भेज देना।’
अलारक्खी ने लडक़ी को उठा लिया और चलने को हुई, तब दारोग़ाजी ने पूछा- मुझे गाली क्यों दे रही थी?
अलारक्खी की रही-सही जान भी निकल गयी। काटो तो लहू नहीं। थर-थर काँपती बोली-नहीं हुजूर, मेरी आँखें फूट जाएँ जो तुमको गाली दी हो।
और वह फूट-फूटकर रोने लगी।
सन्ध्या समय हुसेनी और अलारक्खी दोनों तलब लेने चले। अलारक्खी बहुत उदास थी।
हुसेनी ने सान्त्वना दी- तू इतनी उदास क्यों है? तलब ही न कटेगी - काटने दे अबकी से तेरी जान की कसम खाता हूँ, एक घूँट दारू या ताड़ी नहीं पिऊँगा।
‘मैं डरती हूँ, बरखास्त न कर दे मेरी जीभ जल जाय! कहाँ से कहाँ ...
‘बरखास्त कर देगा, कर दे, उसका अल्ला भला करे! कहाँ तक रोयें!’
‘तुम मुझे नाहक लिये चलते हो। सब-की-सब हँसेंगी।’
‘बरखास्त करेगा तो पूछूँगा नहीं किस इलजाम पर बरखास्त करते हो, गाली देते किसने सुना? कोई अन्धेर है, जिसे चाहे, बरखास्त कर दे और कहीं सुनवाई न हुई तो पंचों से फरियाद करूँगा। चौधरी के दरवाजे पर सर पटक दूँगा।’
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