कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 13 प्रेमचन्द की कहानियाँ 13प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेरहवाँ भाग
'आप चौंकेंगे तो नहीं?'
'बताइए तो।'
'मिस गौहर!'
'मिस गौहर!!'
'जी हाँ, आप चौंके क्यों? क्या आप इसे तस्लीम नहीं करते कि दिन-भर पये-आने-पाई से सिर मारने के बाद मुझे कुछ मनोरंजन करने का भी अधिकार है, नहीं तो जीवन भार हो जाय।'
'मैं इसे नहीं मानता।'
'क्यों?'
'इसीलिए कि मैं इस मनोरंजन को अपनी ब्याहता स्त्री के प्रति अन्याय समझता हूँ।'
शापूरजी नकली हँसी हँसे- 'यही दकियानूसी बात। आपको मालूम होना चाहिए; आज का समय ऐसा कोई बन्धन स्वीकार नहीं करता।'
'और मेरा खयाल है कि कम-से-कम इस विषय में आज का समाज एक पीढ़ी पहले के समाज से कहीं परिष्कृत है। अब देवियों का यह अधिकार स्वीकार किया जाने लगा है।'
'यानी देवियाँ पुरुषों पर हुकूमत कर सकती हैं?'
'उसी तरह जैसे पुरुष देवियों पर हुकूमत कर सकते हैं।'
'मैं इसे नहीं मानता। पुरुष स्त्री का मुहताज नहीं है, स्त्री पुरुष की मुहताज है।'
'आपका आशय यही तो है कि स्त्री अपने भरण-पोषण के लिए पुरुष पर अवलम्बित है?'
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