कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 13 प्रेमचन्द की कहानियाँ 13प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेरहवाँ भाग
क्षमा काँप उठी। अंतस्तल की गहराइयों से एक लहर-सी उठती हुई जान पड़ी, जिसमें उनका अपना अतीत जीवन टूटी हुई नौकाओं की भांति उतराता हुआ दिखायी दिया। रूँधे हुए कंठ से बोली- कुशल तो है बहन, इतनी जल्दी तुम यहाँ फिर क्यों आ गयीं? अभी तो तीन महीने भी नहीं हुए।
मृदुला मुस्करायी; पर उसकी मुस्कराहट में रुदन छिपा हुआ था। फिर बोली- अब सब कुशल है। बहन, सदा के लिए कुशल है। कोई चिंता ही नहीं रही। अब यहाँ जीवन पर्यन्त रहने को तैयार हूँ। तुम्हारे स्नेह और कृपा का मूल्य अब समझ रही हूँ।
उसने एक ठंडी साँस ली और सजल नेत्रों से बोली- तुम्हें बाहर की खबरें क्या मिली होंगी! परसों शहरों में गोलियाँ चलीं। देहातों में आजकल संगीनों की नोक पर लगान वसूल किया जा रहा है। किसानों के पास रुपये हैं नहीं, दें तो कहाँ से दें। अनाज का भाव दिन-दिन गिरता जाता है। पौने दो रूपये में मन भर गेहूँ आता है। मेरी उम्र ही अभी क्या है, अम्माँ जी भी कहती हैं कि अनाज इतना सस्ता कभी नहीं था। खेत की उपज से बीजों तक के दाम नहीं आते। मेहनत और सिंचाई इसके ऊपर। गरीब किसान लगान कहाँ से दें? उस पर सरकार का हुक्म है कि लगान कड़ाई के साथ वसूल किया जाए। किसान इस पर भी राजी हैं कि हमारी जमा-जथा नीलाम कर लो, घर कुर्क कर लो, अपनी जमीन ले लो; मगर यहाँ तो अधिकारियों को अपनी कारगुजारी दिखाने की फिक्र पड़ी हुई है। वह चाहे प्रजा को चक्की में पीस ही क्यों न डालें; सरकार उन्हें मना न करेगी। मैंने सुना है कि वह उलटे और शह देती है। सरकार को तो अपने कर से मतलब है, प्रजा मरे या जिये, उससे कोई प्रयोजन नहीं। अकसर जमींनदारों ने तो लगान वसूल करने से इन्कार कर दिया है। अब पुलिस उनकी मदद पर भेजी गयी है। भैरोगंज का सारा इलाका लूटा जा रहा है। मरता क्या न करता, किसान भी घर-बार छोड़-छोड़कर भागे जा रहे हैं। एक किसान के घर में घुसकर कई कांस्टेबलों ने उसे पीटना शुरू किया। बेचारा बैठा मार खाता रहा। उसकी स्त्री से न रहा गया। शामत की मारी कांस्टेबलों को कुवचन कहने लगी। बस, एक सिपाही ने उसे नंगा कर दिया। क्या कहूँ बहन, कहते शर्म आती है। हमारा ही भाई इतनी निर्दयता करें, इससे ज्यादा दु:ख और लज्जा की और क्या बात होगी? किसान से जब्त न हुआ। कभी पेट भर गरीबों को खाने को तो मिलता ही नहीं, इस पर इतना कठिन परिश्रम, न देह में बल है, न दिल में हिम्मत, पर मनुष्य का हृदय ही तो ठहरा। बेचारा बेदम पड़ा हुआ था। स्त्री का चिल्लाना सुनकर उठ बैठा और उस द़ुष्ट सिपाही को धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया। फिर दोनों में कुश्तम-कुश्ती होने लगी। एक किसान किसी पुलिस के आदमी के साथ इतनी बेअदबी करे, इसे भला वह कहीं बरदाश्त कर सकती है। सब कांस्टेबलों ने गरीब को इतना मारा कि वह मर गया।
क्षमा ने कहा – गॉँव के और लोग तमाश देखते रहे होंगे?
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