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प्रेमचन्द की कहानियाँ 13

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9774
आईएसबीएन :9781613015117

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेरहवाँ भाग


चूड़ियों की झंकार सुनाई दी। रुपिनया आ रही है! हाँ; वही है। रुपिया उसके सिरहाने आकर बोली- सो गए क्या मोहन? घड़ी-भर से तुम्हारी राह देख रही हूँ। आये क्यों नहीं?

मोहन नींद का मक्कर किए पड़ा रहा।

रुपिया ने उसका सिर हिलाकर फिर कहा- क्या सो गए मोहन?

उन कोमल उंगलियों के स्पर्श में क्या सिद्घि थी, कौन जाने। मोहन की सारी आत्मा उन्मत्त हो उठी। उसके प्राण मानो बाहर निकलकर रुपिया के चरणों में समर्पित हो जाने के लिए उछल पड़े। देवी वरदान के लिए सामने खड़ी है। सारा विश्व जैसे नाच रहा है। उसे मालूम हुआ जैसे उसका शरीर लुप्त हो गया है, केवल वह एक मधुर स्वर की भाँति विश्व की गोद में चिपटा हुआ उसके साथ नृत्य कर रहा है।

रुपिया ने कहा- अभी से सो गए क्या जी?

मोहन बोला- हाँ, जरा नींद आ गई थी रूपा। तुम इस वक्त क्या करने आयीं? कहीं अम्मा देख लें, तो मुझे मार ही डालें।

‘तुम आज आये क्यों नहीं?’

‘आज अम्माँ से लड़ाई हो गई।’

‘क्या कहती थीं?’

‘कहती थीं, रुपिया से बोलेगा तो मैं परान दे दूँगी।’

‘तुमने पूछा नहीं, रुपिया से क्यों चिढ़ती हो?’

‘अब उनकी बात क्या कहूँ रूपा? वह किसी का खाना-पहनना नहीं देख सकतीं। अब मुझे तुमसे दूर रहना पड़ेगा।’

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