कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 14 प्रेमचन्द की कहानियाँ 14प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग
सेवती- नहीं, नहीं, अभी तनिक हँस लेने दो।
सेवती हँस रही थी कि बाबू कमलाचरण का बाहर से शुभागमन हुआ, पन्द्रह सोलह वर्ष की आयु थी। गोरा-गोरा गेहुंआ रंग। छरहरा शरीर, हँसमुख, भड़कीले वस्त्रों से शरीर को अलंकृत किये, इत्र में बसे, नेत्रों में सुरमा, अधर पर मुस्कान और हाथ में बुलबुल लिये आकर चारपाई पर बैठ गये। सेवती बोली- कमलू। मुंह मीठा कराओ, तो तुम्हें ऐसे शुभ समाचार सुनायें कि सुनते ही फड़क उठो।
कमला- मुंह तो तुम्हारा आज अवश्य ही मीठा होगा। चाहे शुभ समाचार सुनाओ, चाहे न सुनाओ। आज इस पट्ठे ने यह विजय प्राप्त की है कि लोग दंग रह गये।
यह कहकर कमलाचरण ने बुलबुल को अंगूठे पर बिठा लिया।
सेवती- मेरी खबर सुनते ही नाचने लगोगे।
कमला- तो अच्छा है कि आप न सुनाइए। मैं तो आज यों ही नाच रहा हूं। इस पट्ठे ने आज नाक रख ली। सारा नगर दंग रह गया। नवाब मुन्नेखां बहुत दिनों से मेरी आंखों में चढ़े हुए थे। एक पास होता है, मैं उधर से निकला, तो आप कहने लगे-मियाँ, कोई पट्ठा तैयार हो तो लाओ, दो-दो चोंच हो जायें। यह कहकर आपने अपना पुराना बुलबुल दिखाया। मैंने कहा- कृपानिधान। अभी तो नहीं। परन्तु एक मास में यदि ईश्वर चाहेगा तो आपसे अवश्य एक जोड़ होगी, और बद-बद कर। आज आगा शेरअली के अखाड़े में बदान ही ठहरी। पचास-पचास रुपये की बाजी थी। लाखों मनुष्य जमा थे। उनका पुराना बुलबुल, विश्वास मानों सेवती, कबूतर के बराबर था। परन्तु वह भी केवल फूला हुआ न था। सारे नगर के बुलबुलों को पराजित किये बैठा था। बलपूवर्क लात चलायी। इसने बार-बार नचाया और फिर झपटकर उसकी चोटी दबायी। उसने फिर चोट की। यह नीचे आया। चतुर्दिक कोलाहल मच गया- मार लिया मार लिया। तब तो मुझे भी क्रोध आया डपटकर जो ललकारता हूं तो यह ऊपर और वह नीचे दबा हआ है। फिर तो उसने कितना ही सिर पटका कि ऊपर आ जाए, परन्तु इस शेर ने ऐसा दाबा कि सिर न उठाने दिया। नबाब साहब स्वयं उपस्थित थे। बहुत चिल्लाये, पर क्या हो सकता है? इसने उसे ऐसा दबोचा था जैसे बाज चिड़िया को। आखिर बगटुट भागा। इसने पानी के उस पार तक पीछा किया, पर न पा सका। लोग विस्मय से दंग हो गये। नवाब साहब का तो मुख मलिन हो गया। हवाइयाँ उड़ने लगीं। रुपये हारने की तो उन्हें कुछ चिन्ता नहीं, क्योंकि लाखों की आय है। परन्तु नगर में जो उनकी धाक जमी हुई थी, वह जाती रही। रोते हुए घर को सिधारे। सुनता हूं, यहां से जाते ही उन्होंने अपने बुलबुल को जीवित ही गाड़ दिया। यह कहकर कमलाचरण ने जेब खनखनायी।
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