कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 15 प्रेमचन्द की कहानियाँ 15प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग
'मैं आपसे जो कह रहा हूँ, उस पर आपको विश्वास नहीं आता?'
'मैं जानता हूँ, तुम मालदार आदमी हो।'
'मेरे घर की तलाशी ले लीजिए।'
'मैं इन चकमों में नहीं आता।'
छकौड़ी ने उद्दंड होकर कहा- तो यह कहिए कि आप देश-सेवा नहीं कर रहे हैं, गरीबों का खून चूस रहे हैं! पुलिसवाले कानूनी पहलू से लेते हैं, आप गैरकानूनी पहलू से लेते हैं। नतीजा एक है। आप भी अपमान करते हैं, वह भी अपमान करते हैं। मैं कसम खा रहा हूँ कि मेरे घर में खाने के लिए दाना नहीं है, मेरी स्त्री खाट पर पड़ी-पड़ी मर रही है। फिर भी आपको विश्वास नहीं आता। आप मुझे काँग्रेस का काम करने के लिए नौकर रख लीजिए। 25/- महीने दीजिएगा। इससे ज्यादा अपनी गरीबी का और क्या प्रमाण दूँ। अगर मेरा काम संतोष के लायक न हो, तो एक महीने के बाद मुझे निकाल दीजिएगा। यह समझ लीजिए कि जब मैं आपकी गुलामी करने को तैयार हुआ हूँ, तो इसीलिए कि मुझे दूसरा कोई आधार नहीं है। हम व्यापारी लोग; अपना बस चलते, किसी की चाकरी नहीं करते। जमाना बिगड़ा हुआ है, नहीं 101/- के लिए इतना हाथ-पाँव न जोड़ता।
प्रधान जी हँसकर बोले- यह तो तुमने नयी चाल चली!
'चाल नहीं चल रहा हूँ, अपनी विपत्ति-कथा कह रहा हूँ।'
'काँग्रेस के पास इतने रुपये नहीं हैं कि वह मोटों को खिलाती फिरे।'
'अब भी आप मुझे मोटा कहे जायेंगे?'
'तुम मोटे हो ही!'
'मुझ पर जरा भी दया न कीजिएगा?'
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