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प्रेमचन्द की कहानियाँ 15

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9776
आईएसबीएन :9781613015131

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग


मैंने निर्दय निर्लज्जता से कहा- नहीं लुईसा, यह आखिरी फैसला नहीं है। तुम चाहो तो उसे तोड़ सकती हो, यह बिलकुल तुम्हारे इमकान में है। मैं तुमसे कितना मुहब्बत करता हूं, यह आज तक शायद तुम्हें मालूम न हो। मगर इन तीन सालों में तुम एक पल के लिए भी मेरे दिल से दूर नहीं हुई। अगर तुम मेरी तरफ से अपने दिल को नर्म कर लो, मेरी मोहब्बत की कद्र करो तो मैं सब कुछ करने को तैयार हूं। मैं आज एक मामूली सिपाही हूं, और मेरे मुंह से मुहब्बत का निमन्त्रण पाकर शायद तुम दिल में हंसती होगी, लेकिन एक दिन मैं भी कप्तान हो जाऊंगा और तब शायद हमारे बीच इतनी बड़ी खाई न रहेगी।

लुईसा ने रोकर कहा- किरपिन, तुम बड़े बेरहम हो, मैं तुमको इतना जालिम न समझती थी। खुदा ने क्यों तुम्हें इतना संगदिल बनाया, क्या तुम्हें एक बेकस औरत पर जरा भी रहम नहीं आता।

मैं उसकी बेचारगी पर दिल में खुश होकर बोला- जो खुद संगदिल हो उसे दूसरों की संगदिली की शिकायत करने का क्या हक है?

लुईसा ने गम्भीर स्वर में कहा- मैं बेरहम नहीं हूं किरपिन, खुदा के लिए इन्साफ करो। मेरा दिल दूसरे का हो चुका, मैं उसके बगैर जिन्दा नहीं रह सकती और शायद वह भी मेरे बगैर जिन्दा न रहे। मैं अपनी बात रखने के लिए, अपने ऊपर नेकी करने वाले एक आदमी की आबरू बचाने के लिए अपने ऊपर जर्बदस्त करके अगर तुमसे शादी कर भी लूं तो नतीजा क्या होगा? जोर-जबर्दस्ती से मुहब्बत नहीं पैदा होती। मैं कभी तुमसे मुहब्बत न करूंगी... दोस्तों, अपनी बेशर्मी और बेहायाई का पर्दाफाश करते हुए मेरे दिल को दिल को बड़ी सख्त तकलीफ हो रही है।

मुझे उस वक्त वासना ने इतना अन्धा बना दिया था कि मेरे कानों पर जूं तक न रेंगी। बोला- ऐसा मत ख्याल करो लुईसा। मुहब्ब्त अपना अपना असर जरूर पैदा करती है। तुम इस वक्त मुझे न चाहो लेकिन बहुत दिन न गुजरने पाएंगे कि मेरी मुहब्बत रंग लाएगी, तुम मुझे स्वार्थी और कमीना समझ रही हो, समझो, प्रेम स्वार्थी होता ही है, शायद वह कमीना भी होता है। लेकिन मुझे विश्वास है कि यह नफरत और बेरुखी बहुत दिनों तक न रहेगी। मैं अपने जानी दुश्मन को छोड़ने के लिए ज्यादा से ज्यादा कीमत लूंगा, जो मिल सके। लुईसा पंद्रह मिनट तक भीषण मानसिक यातना की हालत में खड़ी रही। जब उसकी याद आती है तो जी चाहता है गले में छुरी मार लूं। आखिर उसने आंसूभरी निगाहों से मेरी तरफ देखकर कहा- अच्छी बात है किरपिन, अगर तुम्हारी यह इच्छा है तो यही सही। तुम इस वक्त जाओ, मुझे खूब जी भरकर रो लेने दो।

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