कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 15 प्रेमचन्द की कहानियाँ 15प्रेमचंद
|
1 पाठकों को प्रिय 214 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग
यह कहते-कहते कप्तान नाक्स फूट-फूटकर रोने लगे।
मैंने कहा- अगर आपको यह दर्द-भरी दास्तान कहने में दु:ख हो रहा है तो जाने दीजिए।
कप्तान नाक्स ने गला साफ करके कहा- नहीं भाई, वह किस्सा के पास जाता, और उसके दिल से अपने प्रतिद्वन्द्वी के खयाल को मिटाने की कोशिश करता। वह मुझे देखते ही कमरे से बाहर निकल आती, खुश हो-होकर बातें करती। यहां तक कि मैं समझने लगा कि उसे मुझसे प्यार हो गया है।
इसी बीच योरोपियन लड़ाई छिड़ गई। हम और तुम दोनों लड़ाई पर चले गए तुम फ्रांस गये, मैं कमाण्डिंग अफसर के साथ मिस्र गया। लुईसा अपने चचा के साथ यहीं रह गई। राजर्स भी उसके साथ रह गया। तीन साल तक मैं लाम पर रहा। लुईसा के पास से बराबर खत आते रहे। मैं तरक्की पाकर लेफ्टिनेण्ट हो गया और कमाण्डिंग अफसर कुछ दिन और जिन्दा रहते तो जरूर कप्तान हो जाता। मगर मेरी बदनसीबी से वह एक लड़ाई में मारे गये। आप लोगों को उस लड़ाई का हाल मालूम ही है। उनके मरने के एक महीने बाद मैं छुट्टी लेकर घर लौटा। लुईसा अब भी अपने चचा के साथ ही थी। मगर अफसोस, अब न वह हुस्न थी न वह जिन्दादिली, घुलकर कांटा हो गई थी, उस वक्त मुझे उसकी हालत देखकर बहुत रंज हुआ। मुझे अब मालूम हो गया कि उसकी मुहब्बत कितनी सच्ची और कितनी गहरी थी। मुझसे शादी का वादा करके भी वह अपनी भावनाओं पर विजय न पा सकी थी। शायद इसी गम में कुढ़-कुढ़कर उसकी यह हालत हो गई थी। एक दिन मैंने उससे कहा- लुईसा, मुझे ऐसा खयाल होता है कि शायद तुम अपने पुराने प्रेमी को भूल नहीं सकीं। अगर मेरा यह खयाल ठीक है तो मैं उस वादे से तुमको मुक्त करता हूं, तुम शौक से उसके साथ शादी कर लो। मेरे लिए यही इत्मीनान काफी होगा कि मैं दिन रहते घर आ गया। मेरी तरफ से अगर कोई मलाल हो तो उसे निकाल डालो।
लुईसा की बड़ी-बड़ी आंखों से आंसू की बूंदें टपकने लगीं। बोली- वह अब इस दुनिया में नहीं है किरपिन, आज छ: महीने हुए वह फ्रांस में मारे गये। मैं ही उसकी मौत का कारण हुई- यही गम है। फौज से उनका कोई संबंध न था। अगर वह मेरी ओर से निराश न हो जाते तो कभी फौज में भर्ती होते। मरने ही के लिए वह फौज में गए। मगर तुम अब आ गए, मैं बहुत जल्द अच्छी हो जाऊंगी। अब मुझमें तुम्हारी बीवी बनने की काबलियत ज्यादा हो गई। तुम्हारे पहलू में अब कोई कांटा नहीं रहा और न मेरे दिल में कोई गम।
|