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प्रेमचन्द की कहानियाँ 15

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9776
आईएसबीएन :9781613015131

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग


इन शब्दों में व्यंग भरा हुआ था, जिसका आशय यह था कि मैंने लुईसा के प्रेमी की जान जी। इसकी सच्चाई से कौन इन्कार कर सकता है। इसके प्रायश्चित की अगर कोई सूरत थी तो यही कि लुईसा की इतनी खातिरदरी, इतनी दिलजोई करूं, उस पर इस तरह न्योछावर हो जाऊं कि उसके दिल से यह दुख निकल जाय। इसके एक महीने बाद शादी का दिन तय हो गया। हमारी शादी भी हो गई। हम दोनों घर आए। दोस्तों की दावत हुई। शराब के दौर चले। मैं अपनी खुशनसीबी पर फूला नहीं समाता था और मैं ही क्यों मेरे इष्टमित्र सब मेरी खुशकिस्मत पर मुझे बधाई दे रहे थे। मगर क्या मालूम था तकदीर मुझे यों सब्ज बाग दिखा रही है, क्या मालूम था कि यह वह रास्ता है, जिसके पीछे जालिम शिकारी का जाल बिछा हुआ है। मैं तो दोस्तों की खातिर-तवाजों में लगा हुआ था, उधर लुईसा अन्दर कमरे में लेटी हुई इस दुनिया से रुखसत होने का सामान कर रही थी। मैं एक दोस्त की बधाई का धन्यवाद दे रहा था कि राजर्स ने आकर कहा- किरपिन, चलो लुईसा तुम्हें बुला रही है, जल्द। उसकी न जाने क्या हालत हो रही है। मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई। दौड़ता हुआ लुईसा के कमरे में आया।

कप्तान नाक्स की आंखों से फिर आंसू बहने लगे, आवाज फिर भारी हो गई। जरा दम लेकर उन्होंने कहा- अन्दर जाकर देखा तो लुईसा कोच पर लेटी हुई थी। उसका शरीर ऐंठ रहा था। चेहरे पर भी उसी ऐंठन के लक्षण दिखाई दे रहे थे। मुझे देखकर बोली-किरपिन, मेरे पास आ जाओ। मैंने शादी करके अपना वचन पूरा कर दिया। इससे ज्यादा मैं तुम्हें कुछ और न दे सकती थी क्योंकि मैं अपनी मुहब्बत पहले ही दूसरे की भेंट कर चुकी हूं, मुझे माफ करना मैंने जहर खा लिया है और बस कुछ घड़ियों की मेहमान हूं। मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। दिल पर एक नश्तर-सा लगा। घुटने टेककर उसके पास बैठ गया। रोता हुआ बोला- लुईसा, यह तुमने क्या किया हाय क्या तुम मुझे दाग देकर जल्दी चली जाओगी, क्या अब कोई तदबीर नहीं है? फौरन दौड़कर एक डाक्टर के मकान पर गया। मगर आह जब तक उसे साथ लेकर आऊं मेरी वफा की देवी, सच्ची लुईसा हमेशा के लिए मुझसे जुदा हो गई थी। सिर्फ उसके सिरहाने एक छोटा-सा पुर्जा पड़ा हुआ था जिस पर उसने लिखा था, अगर तुम्हें मेरा भाई श्रीनाथ नजर आये तो उससे कह देना, लुईसा मरते वक्त भी उसका एहसान नहीं भूली।

यह कहकर नाक्स ने अपनी वास्केट की जेब से एक मखमली डिबिया निकाली और उसमें से कागज का एक पुर्जा निकालकर दिखाते हुए कहा- चौधरी, यही मेरे उस अस्थायी सौभाग्य की स्मृति है जिसे आज तक मैंने जान से ज्यादा संभाल कर रखा हैं आज तुमसे परिचय हो गए होगे, मगर शुक्र है कि तुम जीते-जागते मौजूद हो। यह अमानत तुम्हारे सुपुर्द करता हूं। अब अगर तुम्हारे जी में आए तो मुझे गोली मार दो, क्योंकि उस स्वर्गिक जीव का हत्यारा मैं हूं।

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