कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 15 प्रेमचन्द की कहानियाँ 15प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग
माता- लड़की तो हुई है।
बालक खुशी से उछलकर बोला- ओ-हो-हो, पैजनियाँ पहन-पहनकर छुनछुन चलेगी, जरा मुझे दिखा दो दादीजी!
माता- अरे क्या सौर में जायगा, पागल हो गया है क्या?
लड़के की उत्सुकता न मानी। सौर के द्वार पर जाकर खड़ा हो गया और बोला- अम्माँ, जरा बच्ची को मुझे दिखा दो।
दाई ने कहा- बच्ची अभी सोती है।
बालक- जरा दिखा दो, गोद में लेकर।
दाई ने कन्या उसे दिखा दी तो वहाँ से दौड़ता हुआ अपने छोटे भाइयों के पास पहुँचा और उन्हें जगा-जगाकर खुशखबरी सुनायी।
एक बोला- नन्हीं-सी होगी।
बड़ा- बिलकुल नन्हीं-सी! बस जैसी बड़ी गुड़िया! ऐसी गोरी है कि क्या किसी साहब की लड़की होगी। यह लड़की मैं लूँगा।
सबसे छोटा बोला- अमको बी दिका दो।
तीनों मिलकर लड़की को देखने आये और वहाँ से बगलें बजाते उछलते-कूदते बाहर आये।
बड़ा- देखा कैसी है!
मँझला- कैसे आँखें बंद किये पड़ी थी।
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