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प्रेमचन्द की कहानियाँ 15

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9776
आईएसबीएन :9781613015131

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग


माता- लड़की तो हुई है।

बालक खुशी से उछलकर बोला- ओ-हो-हो, पैजनियाँ पहन-पहनकर छुनछुन चलेगी, जरा मुझे दिखा दो दादीजी!

माता- अरे क्या सौर में जायगा, पागल हो गया है क्या?

लड़के की उत्सुकता न मानी। सौर के द्वार पर जाकर खड़ा हो गया और बोला- अम्माँ, जरा बच्ची को मुझे दिखा दो।

दाई ने कहा- बच्ची अभी सोती है।

बालक- जरा दिखा दो, गोद में लेकर।

दाई ने कन्या उसे दिखा दी तो वहाँ से दौड़ता हुआ अपने छोटे भाइयों के पास पहुँचा और उन्हें जगा-जगाकर खुशखबरी सुनायी।

एक बोला- नन्हीं-सी होगी।

बड़ा- बिलकुल नन्हीं-सी! बस जैसी बड़ी गुड़िया! ऐसी गोरी है कि क्या किसी साहब की लड़की होगी। यह लड़की मैं लूँगा।

सबसे छोटा बोला- अमको बी दिका दो।

तीनों मिलकर लड़की को देखने आये और वहाँ से बगलें बजाते उछलते-कूदते बाहर आये।

बड़ा- देखा कैसी है!

मँझला- कैसे आँखें बंद किये पड़ी थी।

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