लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 15

प्रेमचन्द की कहानियाँ 15

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9776
आईएसबीएन :9781613015131

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

214 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग


स्त्री- दोपहर ही से कलेजे में एक शूल उठ रहा है, बेचारी बहुत तड़प रही हैं।

दामोदर- मैं जाकर डाँक्टर साहब को बुला लाऊँ न! देर करने से शायद रोग बढ़ जाय। अम्माँजी, अम्माँजी, कैसी तबियत है?

माता ने आँखें खोलीं और कराहते हुए बोली- बेटा, तुम आ गये? अब न बूचँगी, हाय भगवान्, अब न बचूँगी। जैसे कोई कलेजे में बरछी चुभा रहा हो। ऐसी पीड़ा कभी न हुई थी। इतनी उम्र बीत गयी, ऐसी पीड़ा नहीं हुई।

स्त्री- यह कलमुँही छोकरी न जाने किस मनहूस घड़ी में पैदा हुई।

सास- बेटा, सब भगवान् करते हैं, यह बेचारी क्या जाने! देखो मैं मर जाऊँ तो उसे कष्ट मत देना। अच्छा हुआ, मेरे सिर आयी। किसी के सिर तो जाती ही, मेरे ही सिर सही। हाय भगवान्, अब न बचूँगी।

दामोदर- जाकर डाँक्टर बुला लाऊँ? अभी लौटा आता हूँ।

माताजी को केवल अपनी बात की मर्यादा निभानी थी, रुपये न खर्च कराने थे, बोली- नहीं बेटा, डाँक्टर के पास जाकर क्या करोगे? अरे, वह कोई ईश्वर है। डाँक्टर अमृत पिला देगा? दस-बीस वह भी ले जायेगा! डाँक्टर-वैद्य से कुछ न होगा। बेटा, तुम कपड़े उतारो, मेरे पास बैठकर भागवत पढ़ो। अब न बचूँगी, हाय राम!

दामोदर- तेंतर बुरी चीज है, मैं समझता था कि ढकोसला ही ढकोसला है।

स्त्री- इसी से मैं उसे कभी मुँह नहीं लगाती थी।

माता- बेटा, बच्चों को आराम से रखना, भगवान् तुम लोगों को सुखी रखे। अच्छा हुआ मेरे ही सिर गयी, तुम लोगों के सामने मेरा परलोक हो जायगा। कहीं किसी दूसरे के सिर जाती तो क्या होता राम! भगवान् ने मेरी विनती सुन ली। हाय! हाय!!

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book