कहानी संग्रह >> प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16 प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग
सिन्हा- तुम हो जगत पांडे! आओ बैठो। तुम्हारा मुकदमा तो बहुत ही कमजोर है। भले आदमी, जाल भी न करते बना?
जगत- ऐसा न कहें हजूर, गरीब आदमी हूं, मर जाऊंगा।
सिन्हा- किसी वकील मुख्तार से सलाह भी न ले ली?
जगत- अब तो सरकार की सरन में आया हूं।
सिन्हा- सरकार क्या मिसिल बदल देंगे; या नया कानून गढ़ेंगे? तुम गच्चा खा गये। मैं कभी कानून के बाहर नहीं जाता। जानते हो न अपील से कभी मेरी तजवीज रद्द नहीं होती?
जगत- बड़ा धरम होगा सरकार! (सिन्हा के पैरों पर गिन्नियों की एक पोटली रखकर) बड़ा दुखी हूं सरकार!
सिन्हा- (मुस्करा कर) यहां भी अपनी चालबाजी से नहीं चूकते? निकालो अभी और, ओस से प्यास नहीं बुझती। भला दहाई तो पूरा करो।
जगत- बहुत तंग हूं दीनबंधु!
सिन्हा- डालो-डालो कमर में हाथ। भला कुछ मेरे नाम की लाज तो रखो।
जगत- लुट जाऊंगा सरकार!
सिन्हा- लुटें तुम्हारे दुश्मन, जो इलाका बेचकर लड़ते हैं। तुम्हारे जजमानों का भगवान भला करे, तुम्हें किस बात की कमी है।
मिस्टर सिन्हा इस मामले में जरा भी रियायत न करते थे। जगत ने देखा कि यहां काइयांपन से काम चलेगा तो चुपके से 4 गिन्नियां और निकालीं। लेकिन उन्हें मिस्टर सिन्हा के पैरों रखते समय उसकी आंखों से खून निकल आया। यह उसकी बरसों की कमाई थी। बरसों पेट काटकर, तन जलाकर, मन बांधकर, झूठी गवाहियां देकर उसने यह थाती संचय कर पायी थी। उसका हाथों से निकलना प्राण निकलने से कम दुखदायी न था।
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