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प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9777
आईएसबीएन :9781613015148

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग


जगत- हां-हां, सीधा घर जाऊंगा। कहां हैं रुपये देखूं! पत्नी जी ने नोटों का पुलिंदा बाहर निकाला और लालटेन दिखा कर बोलीं- गिन लो। 5000 रुपये हैं!

पांडे ने पुलिंदा लिया और बैठ कर उलट-पुलट कर देखने लगा। उसकी आंखें एक नये प्रकाश से चमकने लगी। हाथों में नोटों को तौलता हुआ बोला- पूरे पांच हजार हैं?

पत्नी- पूरे गिन लो?

जगत- पांच हजार में दो टोकरी भर जायगी! (हाथों से बताकर) इतने सारे पांच हजार!

सिन्हा- क्या अब भी तुम्हें विश्वास नहीं आता?

जगत- हैं-हैं, पूरे हैं पूरे पांच हजार! तो अब जाऊं, भाग जाऊं?

यह कह कर वह पुलिंदा लिए कई कदम लड़खड़ाता हुआ चला, जैसे कोई शराबी, और तब धम से जमीन पर गिर पड़ा। मिस्टर सिन्हा लपक कर उठाने दौड़े तो देखा उसकी आंखें पथरा गयी हैं और मुख पीला पड़ गया है। बोले- पांडे, क्या कहीं चोट आ गयी?

पांडे ने एक बार मुंह खोला जैसे मरी हुई चिड़िया सिर लटका चोंच खोल देती है। जीवन का अंतिम धागा भी टूट गया। ओंठ खुले हुए थे और नोटों का पुलिंदा छाती पर रखा हुआ था। इतने में पत्नी जी भी आ पहुंची और शव को देखकर चौंक पड़ीं! पत्नी- इसे क्या हो गया?

सिन्हा- मर गया और क्या हो गया?

पत्नी- (सिर पीट कर) मर गया! हाय भगवान्! अब कहां जाऊं? यह कह कर बंगले की ओर बड़ी तेजी से चलीं। मिस्टर सिन्हा ने भी नोटों का पुलिंदा शव की छाती पर से उठा लिया और चले।

पत्नी- ये रुपये अब क्या होंगे?

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