|
कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 17 प्रेमचन्द की कहानियाँ 17प्रेमचंद
|
340 पाठक हैं |
|||||||||
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग
दुर्गादास की आंखें क्रोध से लाल हो गयीं। तलवार हाथ में उठा ली और बोला हे, सर्वशक्तिमान् जगत के साक्षी! मैं आपके सामने सौगन्ध लेता हूं, जिस पापी ने हमारी निर्दोष वृद्धा माता को मारा है, उसे इसी तलवार से मारकर जब तक रक्त का बदला न ले लूंगा, जलपान न करूंगा, नाथू ने कांपते स्वर में कहा- ‘हां, हां, स्वामी! यह क्या करते हैं? मुगल बहुत हैं और आप अकेले, यदि आज ही बदला न मिल सका, तो कब तक आप बिना जलपान के रहेंगे? दुर्गादास बोला नाथू! नाथू! तू भूलता है। मैं अकेला नहीं, मेरा सत्य, मेरा प्रभु मेरे साथ है। सत्य की सदैव जय होती है। अबला पर हाथ उठानेवाला बहुत दिन जीवित नहीं रह सकता। ईश्वर ने चाहा, तो आज ही माता के ऋण से उऋण हो जाऊंगा। यदि ऐसा न किया गया, तो एक देश पर प्राण देने वाली क्षत्रणी की गति कदापि न होगी।
सूर्य अस्त हो रहा था। अंधेरा बढ़ता जा रहा था। दुर्गादास ने नाथू को अपनी अंगूठी देकर कहा- ‘तू महासिंह के पास चला जा और मेरी अंगूठी देकर कहना, दुर्गादास अपनी वृद्धा मां जी का बदला लेने के लिए कंटालिया गये हैं, यदि जीते रहे तो कभी मिलेंगे, नहीं तो उनको अन्तिम राम-राम। और उसी क्षण अपने बेटे और अपने भाई को साथ लेकर कंटालिया की ओर चल दिये। पहर रात बीते पटेलों की बस्ती पहुंचे। रणसिंह लगभग एक सौ राजपूत वीरों को साथ ले वीर दुर्गादास की अगवानी के लिये आया। दुर्गादास राजपूतों को देखकर प्रसन्न हुआ। शमशेर खां वाली तलवार ऊंची उठा कर बोला भाइयो! यह तलवार दुष्ट शमशेर खां कंटालिया के सरदार की है। उसने हमारी पूज्य माता की हत्या करके देश का अपमान किया है। मैंने मां जी का बदला लेने के लिए सौगन्ध ली है। यदि तुममें राजपूती का घमण्ड है, यदि तुममें देश के उद्धार की इच्छा है, यदि तुम अपनी निर्दोष वृद्धा माताओं, बहिनों और बेटियों की लाज रखना चाहते हो, तो शत्रुओं से बदला लेने की सौगन्ध उठाओ।
दुर्गादास के जलते हुए शब्द सुनकर वीर राजपूतों का रक्त उमड़ उठा और एक साथ ही सब सरदार बोल उठे हम बदला लेंगे। जीते-जी आपकी आज्ञा का पालन करेंगे। तुरन्त सबों ने म्यान से तलवारें खींच लीं और दुर्गादास के पीछे-पीछे चल दिये।
आधी रात बीत चुकी थी। जान की बाजी खेलने वालों का दल कंटालिया पहुंचा और किले पर धावा बोल दिया। द्वार बन्द था। उसे तोड़कर सब अन्दर घुसे, जो सामने आया, उसे वहीं ठण्डा कर दिया। हथियारों की झनझनाहट सुनकर शमशेर खां चौंक उठा। सामने देखा तो वीर दुर्गादास खड़ा था। दुर्गादास ने कहा- ‘ओ! निर्दोष अबला पर हाथ उठाने वाले पापी शमशेर खां, सावधान! अपने काल को सामने देख शमशेर खां गिड़गिड़ाने लगा।
|
|||||

i 












