कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 18 प्रेमचन्द की कहानियाँ 18प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अठारहवाँ भाग
हीरा ने कहा- मैं डर रहा था कि कहीं तुम गुस्से में आकर मार न बैठो।
'अगर वह मुझे पकड़ता, तो बे-मारे न छोड़ता।'
'अब न आयेगा।'
'आयेगा तो दूर ही से खबर लूँगा। देखूँ कैसे ले जाता हैं।'
'जो गोली मरवा दे?'
'मर जाऊँगा; पर उसके काम तो न आऊँगा।'
'हमारी जान को कोई जान ही नहीं समझता।'
'इसीलिए कि हम इतने सीधे हैं।'
जरा देर में नादों में खली, भूसा, चोकर और दाना भर दिया गया और दोनों मित्र खाने लगे। झूरी खड़ा दोनों को सहला रहा था और बीसों लड़के तमाशा देख रहे थे। सारे गाँव में उछाह-सा मालूम होता था।
उसी समय मालकिन ने आकर दोनों के माथे चूम लिये।
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