कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 19 प्रेमचन्द की कहानियाँ 19प्रेमचंद
|
8 पाठकों को प्रिय 133 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्नीसवाँ भाग
मैकूलाल– यह क्यों?
अलगू– दूकान के दोनों नाके रोके हुए सुराजवाले खड़े हैं, किसी को उधर जाने ही नहीं देते।
अब मुंशी जी को क्रोध आया, अलगू पर नहीं, स्वराज्यवालों पर। उन्हें मेरी शराब बन्द करने का क्या अधिकार है? तर्क भाव से बोले– तुमने मेरा नाम नहीं लिया?
अलगू– बहुत कहा, लेकिन वहाँ कौन किसी की सुनता था? सभी लोग लौट आते थे, मैं भी लौट आया।
मुंशी– चरस लाये?
अलगू– वहाँ भी यही हाल था।
मुंशी– तुम मेरे नौकर हो या स्वराज्य वालों के?
अलगू– मुँह में कालिख लगवाने के लिए थोड़े ही नौकर हूँ?
मुंशी– तो क्या वहाँ बदमाश लोग मुँह में कालिख भी लगा रहे हैं?
अलगू– देखा तो नहीं, लेकिन सब यही कहते थे।
मुंशी– अच्छी बात है, मैं खुद जाता हूँ, देखूँ किसकी मजाल है जो रोके। एक-एक को लाल कर दिखा दूँगा, यह सरकार का राज है, कोई बदमिली नहीं है। वहाँ कोई पुलिस का सिपाही नहीं था?
अलगू– थानेदार साहब आप ही खड़े सबसे कहते थे जिसका जी चाहे शराब ले या पिये लेकिन लौट आते थे, उनकी कोई न सुनता था।
मुंशी– थानेदार मेरे दोस्त हैं, चलो जी ईदू चलते हो। रामबली, बेचन, झिनकू सब चलो। एक-एक बोतल ले लो, देखें कौन रोकता है। कल ही तो मजा चखा दूँगा।
|