लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 19

प्रेमचन्द की कहानियाँ 19

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9780
आईएसबीएन :9781613015179

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

133 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्नीसवाँ भाग


पंडित कैलाशनाथ का बयान खत्म हो गया और कामिनी इजलास पर पधारी। इसका बयान बहुत संक्षिप्त था– मैं अपने कमरे में रात को सो रही थी। कोई एक बजे के करीब चोर-चोर का हल्ला सुनकर मैं चौंक पड़ी और अपनी चारपाई के पास चार आदमियों को हाथापाई करते देखा। मेरे भाई साहब अपने दो चौकीदारों के साथ अभियुक्त को पकड़ते थे और वह जान छुड़ाकर भागना चाहता था। मैं शीघ्रता से उठकर बरामदे में निकल आयी। इसके बाद मैंने चौकीदारों को अपराधी के साथ पुलिस स्टेशन की ओर जाते देखा।

रूपचंद ने कामिनी का बयान सुना और एक ठंडी साँस ली। नेत्रों के आगे से परदा हट गया। कामिनी, तू ऐसी कृतघ्न, ऐसी अन्यायी, ऐसी पिशाचिनी, ऐसी दुरात्मा है! क्या तेरी वह प्रीति, वह विरह-वेदना, वह प्रेमोद्गार, सब धोखे की टट्टी थी! तूने कितनी बार कहा है कि दृढ़ता प्रेम-मंदिर की पहली सीढ़ी है। तूने कितनी बार नयनों में आंसू भरकर इसी गोद में मुँह छिपाकर मुझसे कहा है कि मैं तुम्हारी हो गई, मेरी लाज अब तुम्हारे हाथ में है। परंतु हाय! आज प्रेम-परीक्षा के समय तेरी वह सब बातें खोटी उतरीं। आह! तूने दगा दिया और मेरा जीवन मिट्टी में मिला दिया।

रूपचंद तो विचार-तरंगों में निमग्न था। उसके वकील ने कामिनी से जिरह करनी प्रारम्भ की।

वकील– क्या तुम सत्यनिष्ठा के साथ कह सकती हो कि रूपचंद तुम्हारे मकान पर अक्सर नहीं जाया करता था?

कामिनी– मैंने कभी उसे अपने घर पर नहीं देखा।

वकील– क्या तुम शपथपूर्वक कह सकती हो कि तुम उसके साथ कभी थियेटर देखने नहीं गयीं?

कामिनी– मैंने उसे कभी नहीं देखा।

वकील– क्या तुम शपथ लेकर कह सकती हो कि तुमने उसे प्रेम-पत्र नहीं लिखे?

शिकार के चंगुल में फँसे हुए पक्षी की तरह पत्र का नाम सुनते ही कामिनी के होश-हवाश उड़ गए, हाथ-पैर फूल गए। मुँह न खुल सका। जज ने, वकील ने और दो सहस्र आँखों ने उसकी तरफ उत्सुक्ता से देखा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book