कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 20 प्रेमचन्द की कहानियाँ 20प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग
'जब यहाँ से चला जाऊँगा, तब आपकी बहुत याद आयेगी।'
'रसोई पकाकर तुम सारे दिन क्या किया करते हो? दिखायी नहीं देते !'
'सरकार रहते हैं, इसीलिए, नहीं आता। फिर अब तो मुझे जवाब मिल रहा है। देखिए, भगवान् कहाँ ले जाते हैं।'
आशा की मुख-मुद्रा कठोर हो गयी। उसने कहा, 'क़ौन तुम्हें जवाब देता है?'
'सरकार ही तो कहते हैं, तुझे निकाल दूंगा।'
'अपना काम किये जाओ, कोई नहीं निकालेगा। अब तो तुम फुलके भी अच्छे बनाने लगे।'
'सरकार हैं बड़े गुस्सेवर।'
'दो-चार दिन में उनका मिजाज ठीक किये देती हूँ।'
'आपके साथ चलते हैं तो आपके बाप-से लगते हैं।'
'तुम बड़े मुँहफट हो। खबरदार, जबान सँभालकर बातें किया करो।'
किन्तु अप्रसन्नता का यह झीना आवरण उनके मनोरहस्य को न छिपा सका। वह प्रकाश की भाँति उसके अन्दर से निकला पड़ता था। जुगल ने फिर उसी निर्भीकता से कहा, 'मेरा मुँह कोई बन्द कर ले, यहाँ यों सभी यही कहते हैं। मेरा ब्याह कोई 50 साल की बुढ़िया से कर दे, तो मैं घर छोड़कर भाग जाऊँ। या तो खुद जहर खा लूँ या उसे जहर देकर मार डालूँ। फाँसी ही तो होगी?'
आशा उस कृत्रिम क्रोध को कायम न रख सकी। जुगल ने उसकी हृदयवीणा के तारों पर मिज़राब की ऐसी चोट मारी थी कि उसके बहुत ज़ब्त करने पर भी मन की व्यथा बाहर निकल आयी। उसने कहा, 'भाग्य भी तो कोई वस्तु है।'
'ऐसा भाग्य जाय भाड़ में।'
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