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प्रेमचन्द की कहानियाँ 20

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :154
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9781
आईएसबीएन :9781613015186

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग


घरनी के बिना यह घर आपको भूत का डेरा-सा मालूम होता था। नौकर-चाकर घर की सम्पति उड़ाये देते थे। जो चीज़ जहाँ पड़ी रहती थी, वहीं पड़ी रहती थी। कोई उसको देखने वाला न था।

तो अब मालूम हुआ कि मैं इस घर की चौकसी के लिए लाई गई हूँ। मुझे इस घर की रक्षा करनी चाहिए और अपने को धन्य समझना चाहिए कि यह सारी सम्पति मेरी है। मुख्य वस्तु सम्पत्ति है, मैं तो केवल चौकीदारिन हूँ। ऐसे घर में आज ही आग लग जाये! अब तक तो मैं अनजाने में घर की चौकसी करती थी। जितना वह चाहते हैं, उतना न सही, पर अपनी बुद्धि के अनुसार अवश्य करती थी। आज से किसी चीज़ को भूलकर भी छूने की कसम खाती हूँ। यह मैं जानती हूँ कि कोई पुरुष घर की चौकसी के लिए विवाह नहीं करता और इन महाशय ने चिढ़कर यह बात मुझसे कही। लेकिन सुशीला ठीक कहती है, इन्हें स्त्री के बिना घर सूना लगता होगा, उसी तरह जैसे पिंज़रे में चिड़िया को न देखकर पिंज़रा सूना लगता है। यह है हम स्त्रियों का भाग्य!

मालूम नहीं, इन्हें मुझ पर इतना संदेह क्यों होता है। जबसे नसीब इस घर में लाया है, इन्हें बराबर संदेह-मूलक कटाक्ष करते देखती हूँ। क्या कारण है? ज़रा बाल गुँथवाकर बैठी और यह ओंठ चबाने लगे। कहीं जाती नहीं, कहीं आती नहीं, किसी से बोलती नहीं, फिर भी इतना संदेह! यह अपमान असह्य है। क्या मुझे अपनी आबरु प्यारी नहीं? यह मुझे इतनी छिछोरी क्यों समझते हैं, इन्हें मुझ पर संदेह करते लज्जा भी नहीं आती? काना आदमी किसी को हँसते देखता है, तो समझता है लोग मुझी पर हँस रहे हैं। शायद इन्हें भी यही वहम हो गया है कि मैं इन्हें चिढ़ाती हूँ। अपने अधिकार के बाहर कोई काम कर बैठने से कदाचित् हमारे चित्त की यही वृत्ति हो जाती है। भिक्षुक राजा की गद्दी पर बैठकर चैन की नींद नहीं सो सकता। उसे अपने चारों तरफ शत्रु-ही-शत्रु दिखाई देंगे। मैं समझती हूँ, सभी शादी करने वाले बुड्ढ़ों का यही हाल है।

आज सुशीला के कहने से मैं ठाकुर जी की झाँकी देखने जा रही थी। अब यह साधारण बुद्धि का आदमी भी समझ सकता है कि फ़ूहड़ बहू बनकर बाहर निकलना अपनी हँसी उड़ाना है, लेकिन आप उसी वक्त न जाने किधर से टपक पड़े और मेरी ओर तिरस्कारपूर्ण नेत्रों से देखकर बोले- कहाँ की तैयारी है?

मैंने कह दिया- ज़रा ठाकुरजी की झाँकी देखने जाती हूँ।

इतना सुनते ही त्योरियां चढ़ाकर बोले- तुम्हारे जाने की कुछ जरुरत नहीं। जो अपने पति की सेवा नहीं कर सकती, उसे देवताओं के दर्शन से पुण्य के बदले पाप होता है। मुझसे उड़ने चली हो। मैं औरतों की नस-नस पहचानता हूँ।

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