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कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 20 प्रेमचन्द की कहानियाँ 20प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग
वही हृदयग्राही राग था। वही हृदय भेदी प्रभाव, वही मनोहरता और वही सब कुछ जो मन को मोह लेता है। एक क्षण में योगी की मोहनी मूर्ति दिखाई दी। वही मस्तानापन, वही मतवाले नेत्र, वही नयनाभिराम देवताओं का-सा स्वरूप। मुखमंडल पर मंद-मंद मुस्कान थी। प्रभा ने उसकी तरफ़ सहमी हुई आँखों से देखा। एकाएक उसका हृदय उछल पड़ा। उसकी आँखों के आगे से एक पर्दा हट गया। प्रेम-विह्वल हो, आँखों में प्रेम के आँसू-भरे वह अपने पति के चरणारविंदों पर गिर पड़ी और गद्गद कंठ से बोली- ''प्यारे प्रियतम।''
राजा हरिश्चंद्र को आज सच्ची विजय प्राप्त हुई। उन्होंने प्रभा को उठाकर छाती से लगा लिया। दोनों आज एक प्राण हो गए। राजा हरिश्चंद्र ने कहा- ''जानती हो मैंने यह स्वाँग क्यों रचा था। गाने का मुझे सदा से व्यसन है और सुना कि तुम्हें भी इसका शौक है। तुम्हें अपना हृदय भेंट करने से प्रथम एक बार तुम्हारा दर्शन करना आवश्यक प्रतीत हुआ और इसके लिए सबसे सुगम उपाय यही सूझ पड़ा।’’
प्रभा ने अनुराग से देखकर कहा- ''योगी बनकर तुमने जो कुछ पा लिया वह राजा रहकर कदापि न पा सकते। अब तुम मेरे पति भी हो और प्रियतम भी हो, पर तुमने मुझे बड़ा धोखा दिया और मेरी आत्मा को कलंकित किया। इसका उत्तरदाता कौन होगा?''
2. धोखे की टट्टी
लाल मिर्च देखने में कैसी खूबसूरत होती है, मगर खाने में कैसी कड़वी! सुरेंद्र की भी यही कैफ़ियत थी, देखने में बहुत सुन्दर वेषभूषा, ज़बान का बहुत मीठा, दोस्तों में बहुत हरदिल-अजीज, मगर बला का विषय-लोलुप, ऐयाश, उपद्रवी। मदरसे की एंट्रेंस जमात में पढ़ता था। आयु 16 साल से ज़्यादा न थी, मगर मिज़ाज में अभी से आवारगी का दखल हो चला था। शराब की लुत्फ से ज़बान भयमुक्त हो चुकी थी और घर के संदूक खोलकर रुपए चुरा लेना तो एक मामूली बात थी। माता पिता समझा-बुझाकर हार गए, स्कूल मास्टरों ने मारपीट, जुर्माना, सब-कुछ आजमा देखा, मगर सुरेंद्र ने जो चाल-चलन, आचार-व्यवहार अख्तियार की थी, उसमें जरा भी न मुड़ा। शहर में कहीं बारात आए, कहीं नाच हो, कहीं भोग-विलास एवं आनंद की महफ़िल सजे, सुरेंद्र का वहाँ पहुँचना अनिवार्य कार्य था। उसे कभी किसी ने किताब पढ़ते न देखा, मगर ताज्जुब यह था कि वह हर साल इम्तहान में कामयाब हो जाता था। इसका राज उसके खास दोस्तों के अलावा और कोई न जानता था।
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