कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 21 प्रेमचन्द की कहानियाँ 21प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग
यह कहकर उसने लाठी उठाई और अपने घर चला आया।
बूढ़ी ठकुराइन ने पूछा- देखा जमींदार को कैसे आदमी हैं?
तखत सिंह- अच्छे आदमी हैं। मैं उन्हें पहचान गया।
ठकुराइन- क्या तुमसे पहले की मुलाकात है।
तखत सिंह- मेरी उनकी बीस बरस की जान-पहिचान है, गुड़ियों के मेलेवाली बात याद है न?
उस दिन से तखत सिंह फिर हीरामणि के पास न आया।
छ: महीने के बाद रेवती को भी श्रीपुर देखने का शौक हुआ। वह और उसकी बहू और बच्चे सब श्रीपुर आये। गाँव की सब औरतें उससे मिलने आयीं। उनमें बूढ़ी ठकुराइन भी थी। उसकी बातचीत, सलीका और तमीज देखकर रेवती दंग रह गयी। जब वह चलने लगी तो रेवती ने कहा- ठकुराइन, कभी-कभी आया करना, तुमसे मिलकर तबियत बहुत खुश हुई। इस तरह दोनों औरतों में धीरे-धीरे मेल हो गया। यहाँ तो यह कैफियत थी और हीरामणि अपने मुख्तारेआम के बहकावे में आकर तखत सिंह को बेदखल करने की तरकीबें सोच रहा था।
जेठ की पूरनमासी आयी। हीरामणि की सालगिरह की तैयारियाँ होने लगीं। रेवती चलनी में मैदा छान रही थी कि बूढ़ी ठकुराइन आयी। रेवती ने मुस्कराकर कहा- ठकुराइन, हमारे यहाँ कल तुम्हारा न्योता है।
ठकुराइन- तुम्हारा न्योता सिर-आँखों पर। कौन-सी बरसगॉँठ है?
रेवती- उनतीसवीं।
ठकुराइन- नरायन करे अभी ऐसे-ऐसे सौ दिन तुम्हें और देखने नसीब हों।
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