कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 21 प्रेमचन्द की कहानियाँ 21प्रेमचंद
|
139 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग
साल भर तखतसिंह ने ज्यों-त्यों करके काटा। फिर बरसात आयी। उसका घर छाया न गया था। कई दिन तक मूसलाधर मेंह बरसा तो मकान का एक हिस्सा गिर पड़ा। गाय वहाँ बँधी हुई थी, दबकर मर गयीं तखतसिंह को भी सख्त चोट आयी। उसी दिन से बुखार आना शुरू हुआ। दवा-दारू कौन करता, रोजी का सहारा था वह भी टूटा। जालिम बेदर्द मुसीबत ने कुचल डाला। सारा मकान पानी से भरा हुआ, घर में अनाज का एक दाना नहीं, अंधेरे में पड़ा हुआ कराह रहा था कि रेवती उसके घर गयी। तखतसिंह ने आँखें खोलीं और पूछा- कौन है?
ठकुराइन- रेवती रानी हैं।
तखतसिंह- मेरे धन्य भाग, मुझ पर बड़ी दया की ।
रेवती ने लज्जित होकर कहा- ठकुराइन, ईश्वर जानता है, मैं अपने बेटे से हैरान हूँ। तुम्हें जो तकलीफ हो मुझसे कहो।
तुम्हारे ऊपर ऐसी आफत पड़ गयी और हमसे खबर तक न की?
यह कहकर रेवती ने रुपयों की एक छोटी-सी पोटली ठकुराइन के सामने रख दी।
रुपयों की झनकार सुनकर तखतसिंह उठ बैठा और बोला- रानी, हम इसके भूखे नहीं है। मरते दम गुनाहगार न करो।
दूसरे दिन हीरामणि भी अपने मुसाहिबों को लिये उधर से जा निकला। गिरा हुआ मकान देखकर मुस्कराया। उसके दिल ने कहा, आखिर मैंने उसका घमण्ड तोड़ दिया। मकान के अन्दर जाकर बोला- ठाकुर, अब क्या हाल है?
ठाकुर ने धीरे से कहा- सब ईश्वर की दया है, आप कैसे भूल पड़े?
हीरामणि को दूसरी बार हार खानी पड़ी। उसकी यह आरजू कि तखतसिंह मेरे पॉँव को आँखों से चूमे, अब भी पूरी न हुई। उसी रात को वह गरीब, आजाद, ईमानदार और बेगरज ठाकुर इस दुनिया से विदा हो गया।
बूढ़ी ठकुराइन अब दुनिया में अकेली थी। कोई उसके गम का शरीक और उसके मरने पर आँसू बहानेवाला न था। कंगाली ने गम की आँच और तेज कर दी थी। जरूरत की चीजें मौत के घाव को चाहे न भर सकें मगर मरहम का काम जरूर करती हैं।
|