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प्रेमचन्द की कहानियाँ 22

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9783
आईएसबीएन :9781613015209

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग


कुँवर साहब ने मन में सोचा कि मेरे यहाँ सदा अदालत-कचहरी लगी ही रहती हे। सैकड़ों रुपए तो डिगरी और तजबीज़ों तथा और अँगरेजी कागजों के अनुवाद में लग जाते हैं। एक अंग्रेज़ी का पूर्ण पंडित सहज ही में मुझे मिल रहा है। सो भी अधिक तनख्वाह नहीं देनी पड़ेगी। इसे रख लेना ही उचित है, लेकिन पंडितजी की बात का उत्तर देना आवश्यक था, अत: कहा- ''महाशय, सत्यवादी मनुष्य को कितना ही कम वेतन दिया जावे, किंतु वह सत्य को न छोड़ेगा और न अधिक वेतन पाने से बेईमान सच्चा बन सकता है। सच्चाई का रुपए से कुछ संबंध नहीं। मैंने ईमानदार कुली देखे हैं और बेईमान बड़े-बड़े धनाढ्य पुरुष, परंतु अच्छा; आप एक सज्जन पुरुष हैं। आप मेरे यहाँ प्रसन्नतापूर्वक रहिए। मैं तापको एक इलाक़े का अधिकारी बना दूँगा और आपका काम देखकर तरक्की भी कर दूँगा।''

दुर्गानाथजी ने 20 रुपये मासिक पर रहना स्वीकार कर लिया। यहीं से कोई ढाई मील पर कई गाँवों का इलाका चाँदपार के नाम से विख्यात था। पंडितजी इसी इलाक़े के कारिंदे नियत हुए।

पंडित दुर्गानाथ चाँदपार के इलाके में पहुँचे और अपने निवासस्थान को देखा, तो उन्होंने कुँवर साहब के कथन को बिलकुल सत्य पाया। यथार्थ में रियासत की नौकरी सुख-संपत्ति का घर है। रहने के लिए सुंदर बँगला है, जिसमें बहुमूल्य बिछौना बिछा हुआ था, सैकड़ों बीघे की सीर, कई नौकर-चाकर, कितने ही चपरासी, सवारी के लिए एक सुंदर टाँगन, सुख और ठाटबाट के सारे सामान उपस्थित, किंतु इस प्रकार की सजावट और विलास-युक्त सामग्री देखकर उन्हें उतनी प्रसन्नता न हुई क्योंकि इसी सजे हुए बँगले के चारों ओर किसानों के झोंपड़े थे। फूस के घरों में मिट्टी के वर्तनों के सिवा और सामान ही क्या था। वहाँ के लोगों में वह बँगला कोट के नाम से विख्यात था। लड़के उसे भय की दृष्टि से देखते। उसके चबूतरे पर पैर रखने का उन्हें साहस न पड़ता। इस दीनता के बीच में इतना बड़ा ऐश्वर्ययुक्त दृश्य उनके लिए अत्यंद हृदयविदारक था। किसानों की यह दशा थी कि सामने आते हुए थरथर काँपते थे। चपरासी लोग उनसे ऐसा बर्ताव करते कि पशुओं के साथ भी वैसा नहीं होता है। पहले ही दिन कई सौ किसानों ने पंडितजी को अनेक प्रकार के पदार्थ भेंट के रूप में उपस्थित किए, किंतु जब वे सब लौटा दिए गए तो उन्हें बहुत ही आश्चर्य हुआ। किसान प्रसन्न हुए, किंतु चपरासियों का रक्त उबलने लगा। नाई और कहार खिदमत को आए, किंतु लौटा दिए गए। अहीरों के घरों से दूध से भरा हुआ एक मटका आया, वह भी वापस हुआ। तमोली एक डोली पान लाया, किंतु वे भी स्वीकार न हुए। असामी आपस में कहने लगे कि कोई धर्मात्मा पुरुष आए हैं, परंतु चपरासियों को तो ये नई बातें असह्य हो गई। उन्होंने कहा- ''हुजूर, अगर आपको ये चीज़े पसंद न हों तो न ले मगर रस्म को तो न मिटावें। अगर कोई दूसरा आदमी यहाँ आवेगा तो उसे नए सिरे से यह रस्म बाँधने में कितनी दिक्कत होगी।''

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